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धादस प्रकाश
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चोरो, कुशील और द्विविध-चेतन अचेतन परिग्रह राशिसे एकदेश विरक्त हो देशचारित्रको प्राप्त होता है ।। ३-५ ॥ आगे पाँच अणुब्रतोंका स्वरूप निर्देश करते हैं
हिसादिप्रभेदेनाणवतं पञ्चधामतम् । निवृत्तिस्त्रहिंसातोऽहिसाणुव्रतमुच्यते ॥ ६ ॥ संकल्पाद् विहिता हिंसा भविना भववर्धनी।। एतत्प्रभावतो जीया जायन्ते श्वनभूमिषु ।। ७ ॥ आरम्भाज्जायते हिंसा या च युद्धात्प्राजयते । उधमाद या समुरपना तासां त्यागो न वर्तते ॥ ८॥ यथायथोद्ध्वमायान्ति प्रतिमादिविधानतः । तथा तथा परित्याग आसां हि सम्भवेन्नृणाम् ।। ९ ॥ स्थूलानृतवचनानां त्यागो यत्र विधीयते । मम्मतमेतत्म्यात् प्रजर्मशालिमाम ॥१०॥ स्थूलस्तेयाख्य पापाद् या विरति पुण्यशोभिनाम् । अचौर्याणवतं ज्ञेयं तवेतस्सौख्यकारणम् ॥ ११ ॥ धर्मेण परिणीतायाः पत्न्याः सम्बन्धमन्तरा। अन्यस्त्रीसङ्ग सन्त्यागो ब्रह्मचर्य भवेत्तु तत् ।। १२॥ धनधान्यादिवस्तुनां चेतनाञ्चेशनावताम् । यो देशेन परित्यागः सोऽपरिग्रहसंज्ञकम् ।। १३ ।। अणवतं परिज्ञेयं बनसौजन्यकारणम्।
वस्तुतो वर्धमानेच्छा जनानां दुःखकारणम् ।। १४ ।। अर्थ- अहिंसा आदिके भेदसे अणुव्रत पांच प्रकारका माना गया है। असहिसासे निवृत्ति होना अहिंसाणवत कहलाता है । संकल्पासे की गई हिंसा संसारो जीवोंके संसारको बढ़ानेवाली है। इसके प्रभावसे जोव नरककी पृथिवियोंमें उत्पन्न होते हैं। आरम्भसे, युद्धसे और उद्योग से जो हिसायें होती हैं उनका प्रारम्भमें त्याग नहीं होता। प्रतिमा मादिके विधानसे मनुष्य जैसे-जैसे ऊपर आते जाते हैं वैसे-वैसे हो उनका त्याग सम्भव होता जाता है। स्थूल असत्य वचनोंका जिसमें त्याग किया जाता है वह समोचोन धर्मसे सुशोभित पुरुषों का सत्याण यत' है । स्थूल चोरो नामक पापसे पुण्यशाली मनुष्योंको जो निवृत्ति है उसे अचौर्याणुव्रत जानना चाहिए। यह सुखका कारण है। धर्मपूर्वक विवाहो गई स्त्रोके सम्बन्धको छोड़कर अन्य स्त्रियोंके समागमका