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षष्ठ प्रकाश
का माना गया है और विनय आदि प्रभेदोस चार प्रकारका भी स्वीकृत किया गया है ।। ८६-३२ ।।
विशेषार्थ-'मूलावारके आधारपर दश भेद निम्न प्रकार है१. अनागत, २. अतिक्रान्त, ३. कोटि सहित, ४. निखण्डित, ५, साकार, ६. अनाकार, ७. परिणामगत, 4. अपरिशेष, ६. अध्वानगत और १०. सहेतुक । आचारवृत्तिके अनुसार इनके संक्षिप्त लक्षण इस प्रकार हैं
१. अनागत प्रत्याख्यान-भविष्यत् कालमें किये जाने वाले उपवास आदिको पहले कर लेना, जसे चतुर्दशीका उपवास त्रयोदशोको कार गंगा, यह बनायत प्रत्याशी है।
२. अतिक्रान्त प्रत्यारघान-अतीत कालमें किये जानेवाले उपवास आदिको आगे करना, जैसे चतुर्दशीका उपवास अमावस्या या पूर्णिमा आदिमें करना, यह अतिकान्त प्रत्याख्यान है।
३. कोटिसहित प्रत्याख्यान-कोटि सहित उपवासको कोटि सहित प्रत्याख्यान कहते हैं, जैसे-प्रातःकाल यदि शक्ति रहेगी तो उपवास करूंगा अन्यथा नहीं।
४. निखण्डित प्रत्याख्यान–पाक्षिक आदिमें अवश्य करने योग्य उपवासका करना निखण्डित प्रत्याख्यान है।
५. साकार प्रत्याख्यान-भेदसहित उपवास करनेको साकार प्रत्याख्यान कहते हैं, जैसे--सर्वतोभद्र तथा कनकावली आदि नतोंकी विधि सम्पन्न करते हुए उपवास करना ।
६. अनाकार प्रत्याख्यान-तिथि आदिकी अपेक्षाके बिना स्वेच्छा. से कभी भी उपवास करना अनाकार प्रत्याख्यान है।
७. परिमाणगत प्रत्याख्यान-वेला तेला आदि प्रमाणको लिये हए उपवास करना परिमाणगत प्रत्याख्यान है।
८. अपरिशेष प्रत्याख्यान-जीवनपर्यन्त के लिये चतुर्विध आहारका त्याग करना अपरिशेष प्रत्याख्यान है।
९. अध्वानगत प्रत्याख्यान-मार्ग विषयक प्रत्याख्यानको अध्वानगत प्रत्याख्यान कहते हैं, जैसे-इस जङ्गल और नदी आदिसे बाहर निकलने तक उपवास करना ।
१०. सहेतुक प्रत्याख्यान-किसी हेतुसे उपवास करना सहेतुक १. गाथा, ६४० ।