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HEमविश्रुतक्षानी ११
संपतपर्याप्त रचना असं संप
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नियतका पर्याप्तरचना
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मनिधनबानी समयतादि गुण मोणकाय स्थान
गुरु गुरुन पतगुणस्था का
नवतान/ VI---... - दिपिज्ञानर
चनाएवंमति श्रुतक्तहान
भवधिमति काश्रुितापाया था भिक्षा मम० म०म०म०म०म०म०म०
कावाधान गर्दैवत वत्वत् । वत् | पत् बत् धत् पत्च त् । मितिश्रुतमय
वामलिनु त इनपर्यपक्षा नमत्यादि
विश्रु बस्
म०म०! 200 म. अस् पत्. वर वत् | वक्ष पन्ध
त वत्
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मसापर्यय
हानी रचर
मनः
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पथबच ....यरामा
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