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। गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ७१७-७१५-७१६
___ भवनत्रिक देव, बहुरि सौधर्म युगल, बहुरि सनत्कुमार युगल, बहुरि ब्रह्मादिक छह, बहुरि शतारयुगल, बहुरि मानतादिक नवम वेयक पर्यंत तेरह, बहुरि अनुदिश, अनुत्तर दिमान चौदह, इनि सात स्थानानि विर्षे क्रम में तेज का जघन्यांश, बहुरि तेज का मध्यमांश, बहुरि तेज का उत्कृष्ट्रांश, पन का जघन्यांश, बहुरि पद्म का मध्यमांश, बहुरि पद्म का उत्कृष्टांश, शुक्ल का जघन्यांश, बहुरि शुक्ल का मध्यमांश, बहुरि शुक्ल का उत्कृष्टांश ए लेण्या पाइए हैं।
सव्वसुराणं ओघे, मिच्छबुगे अविरदे य तिणेव । णवरि य भवणतिकपित्थीणं च य अंविरदे पुण्णो ॥७१७॥
सर्बसुराणामोघे, मिथ्यात्वतिके अविरसे च य एव ।
नबरि च भयनत्रिकल्पस्त्रीणां च अविरते पूर्णः ।।७१७॥ टोका - सर्व सामान्य देव विर्षे मिथ्यादृष्टी सासादन, असंयत इनिविषं तीन तीन आलाप हैं । बहुरि इतना विशेष - जो भवनत्रिक देव पर कल्पवासिनी स्त्री, इनके असंयत विर्षे एक पर्याप्त पालाप ही है । जाते असंयत तियंच मनुष्य मरि करि तहां उपज नाहीं .
मिस्से पुण्णालाओ, अणुद्दिसाणुत्तरा हु ते सम्मा। अविरव तिण्णालावा, अणुहिस्साणुत्तरे होंति ॥७१६॥ मिश्रे पूर्णालापः, अनुदिशानुत्तरा हि ते सम्यक् ।
अविरते त्रय आलापाः, अनुदिशानुत्तरे भवंति ।।७१८॥ टोका - नव ग्रेवेयक पर्यत सामान्य देव, तिनिकै मिश्र मुणस्थान विर्षे एक पर्याप्त बालाप ही है । बहुरि अनुदिश भर अनुत्तर विमानवासी अहमिंद्र सर्व सम्यग्दृष्टी ही हैं । तातै तिनके असंयत विर्ष तीन पालाप हैं।
आगे इंद्रिव मार्गणा विर्षे कहै हैंबादरसहमेइंदिय-बि-ति-घउ-रिदियअसण्णिजीवारणं । अोघे पुण्णे तिण्ण य, अपुग्णगे पुण्ण अपुण्णो दु ॥७१६॥
बावरसूक्ष्मकेंद्रियद्वित्रिचतुरिट्रियासंशिजीवानाम् । ... प्रोघे पूर्णे त्रयन, अपूर्णके पुनः अपूर्णस्तु ।।७१६॥ . . .
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