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। योग्भटसार पौवकाळ माया ६७०.६७६ टोका - पाहारक अर मारणांतिक ए दोऊ समुद्धात तो नियम करि एक दिशा कौं हो प्राप्त हो हैं; जाते इन विषं सूच्यंगुल का संख्यातवां भाग प्रमाण ही उंचाई, चौड़ाई होइ । पर लंबाई बहुत होइ । तातें एक दिशा कौं प्राप्त कहिए । बहुरि अवशेष पंच समुद्घात रहे, ते दशों दिशा कौं प्राप्त हैं, जाते इनि विर्षे यथायोग्य लंबाई, चौड़ाई, उंचाई सर्य हो पाइए है।
आमैं आहार अनाहार का काल कहैं हैंअंगलअसंखभागो, कालो आहारयस्स उक्कस्सो। कम्मम्मि प्रणाहारों, उक्कस्सं तिणि समया ह॥६७०॥
अंगुलासंख्यभागः, कालः माहारकस्योत्कृष्टः ।
कार्मणे अनाहारः, उत्कृष्टः अयः समया हि ।।६७०।। . . . टोका - माहार का उत्कृष्ट काल सूच्यंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण है। सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग के जेते प्रदेश होंहि तितने समय प्रमाण आहारक का काल है।
इहा प्रश्न - जो मरण तो आयु पूरी भएं पीछे होइ ही होइ,, तहां अनाहार होइ इहां श्राहार का काल इतना कैसे कहा ? ।
ताका समाधान - जो मरण भए भी जिस जीव के वक्ररूप विंग्रह गति न होइ, सूधी एक समय रूप गति होइ, ताकै अनाहारकपणा न हो है । ग्राहारकपणा ही रहै है, तातै प्राहारक का पूर्वोक्तकाल उत्कृष्टपने करि कहा है । बहुरि पाहारक का जघन्य काल तीन समय घाटि सांस का अठारहवां भाग जानना; जाते क्षुद्रभव विर्षे विग्रहगति के समय घटाए इतना काल हो है । बहुरि अनाहारक का काल कार्मारा शरीर विर्षे उत्कृष्ट तीन समय जघन्य एक समय जानना; जाते विग्रह गति विष इतने काल पर्यंत ही नोकर्म वर्गरणानि का ग्रहण न ही है।
प्रागै इहां जीवनि की संख्या कहैं हैकम्मइयकायजोगी, होदि अणाहारयाण परिमाणं । ' तस्विरहिदसंसारी, सव्वो आहारपरिमाणं ॥६७१॥
कामसकाययोगी, भवति अनाहारकाणां परिमाणम् । तद्विरहितसंसारी, सर्व आहारंपरिमारणम् ॥६७१॥..
RAMATITICATournALE