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सम्यानचन्द्रिका भाषाटोफर
जोव पुद्गलनि के जो गति, स्थिति, अवगाह क्रिया हो है; ताकौं निमित्त मात्र ही हैं; सो कहिए हैं -
जत्तस्स पहं उत्तस्स, आसणं णिवसमस्स वसदी वा। गदिठाणोरगहकरणे, धम्मतियं साधगं होदि ॥५६७॥
यातस्य पंथाः तिष्ठतः, प्रासनं निवसकस्य वसतिर्धा !,
गतिस्थानावगाहकरणे, धर्मअयं साधकं भवति ।।५६७॥ . टीक - जैसे गमन करनेवालों की पंथा जो मार्ग, सो कारण है । तिष्ठनेवालौं कौं आसन जो स्थान, सो कारण है | निवास करनेवालों की वसतिका जो बसने का क्षेत्र, सो कारण है । तैसे गति, स्थिति अवगाह के कारण धर्मादिक द्रव्य हैं। जैसे ते पंथादिक श्राप गमनादि नाहीं करें है; जीवनि कौं प्रेरक होइ गमनादि नाई करावं है । स्वयमेव जे गमनादि करें, तिनको कारणभूत हो हैं । सो कारण इतना ही, जो जहां पंथादिक होंइ, तहां ही वे गमनादिरूप प्रवत । तैसे धर्मादिक द्रव्य आप ममनादि नाहीं करै है; पुद्गलनि कौं प्रेरक होइ गमनादिक क्रिया नाहीं करावं हैं; स्वयमेव ही ममनादिक क्रियारूप प्रवर्तते जे जोद पुद्गल, तिनको सहकारी कारण हो हैं। सो कारण इतना ही जो धर्मादिक द्रव्य जहां होइ, वहां ही गमनादि क्रियारूप जीव पुद्गल प्रवतें हैं । . . .
वत्तणहेदू कालो, वत्तणगुणमविय बव्वणिचयेसु । . . कालाधारेणेव य, बदति हु सव्वदयवाणि ॥५६८॥
वर्तनाहेतुः कालः, थर्तनागुणमबेहि द्रव्यनिचयेषु । ..
कालाधारेणैव च, वर्तते हि सर्वद्रव्यारिख ।।५६८॥ . टीका - णिच् प्रत्य संयुक्त जो वृतञ् धातु, ताका कर्म विर्षे वा भाव विर्षे वर्तना शब्द निपजै है, सो याका अर्थ यह जो वर्त वा वर्तन मात्र होइ, ताकी वर्तना कहिए । सो धर्मादिक द्रव्य अपने अपने पर्यायनि की निष्पत्ति विर्षे स्वयमेव वर्तमान हैं । तिनकै बाह्य कोई कारणभूत उपकार बिना सो प्रवृत्ति संभवे नाही ; तातै तिनके, तिस प्रवृत्ति करावने कौं कारण काल द्रव्य है; असें वर्तना काल का उपकार जानना । इहां णिच् प्रत्यय का अर्थ यहु - जो द्रव्यनि का पर्याय वर्ते हैं, ताका वर्तावनेवाला काल है ।