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सन्थग्नानचन्धिका भाषाहीका 1
। ६५६ हना कौं प्राप्त भया, तहां क्षेत्र परिवर्तन का अनुक्रम विर्षे तौ पहिले जघन्य अगाहना पाई थी, अर पीछे दूसरी बार अनुक्रमरूप अवगाहना पाई; सो गिणने में प्रावै है । अर क्षेत्र परिवर्तन का काल विर्ष बीचि में अनुक्रम रहित अवगाहना पावने का काल सहित सर्व काल गिणने में प्राव है । जैसे ही सर्व विर्षे जानि लेना।
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अब इहां द्रव्य परिवर्तन विर्षे काल का परिमाण कहैं हैं । तहां अगहीत ग्रहण का काल अनंत है ; तथापि यहु सर्व से स्तोक है । जाते जिनि पुद्गलनि स्यौं द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावनि का संस्कार नष्ट है, ते पुद्गल बहुत बार ग्रहण में प्रावते नाही, याही ते विवक्षित पुद्गल परिवर्तन के मध्य गृहीत पुद्गलनि का ही बहुत बार ग्रहण संभव है । सोई कह्या है -
सुहमटिदिसंजुत्तं, आसण्णं कम्मरणज्जरामुक्कं । ।
पाएग एदि गहणं, दज्वमरिणद्दिसंठाणं ॥ जे पुद्गल कर्मरूप परिणए थे, पर जिनकी स्थिति थोरी थी, पर निर्जरा होते कम अवस्था करि रहित भए हैं पर जीव के प्रेदशनि स्यों एक क्षेत्रावगाही तिष्ठं हैं, पर संस्थान आकार जिनिका कह्या न जाय पर विवक्षित पुद्गल परिवर्तन का पहिला समय विर्षे जिस स्वरूप ग्रहण में प्राए, तिसकरि रहित होइ, असे पुद्गल, जीव करि बाहुल्य पर्न समयप्रबद्धनि विर्षे ग्रहण कीजिए है । असा नियम नाहीं, जो जैसे ही पुद्गलनि का ग्रहण करें, परंतु बहुत बार असे ही पुद्गल नि 'का ग्रहण हो है, जाते ए पुद्गल द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का संस्कार करि संयुक्त हैं ।
. 'बहुरि अगृहीत ग्रहण के काल तें मिश्र ग्रहण का काल अनंत गुणा है । बहुरि तिस मिश्र ग्रहण के काल ते गृहीत ग्रहण का जघन्यकाल अनंत गुणा है । बहुरि तिस तं सर्व पुद्गल परिवर्तन का जघन्य काल किछ अधिक है । जघन्य गृहीत ग्रहण काल को अनंत का भाग दीएं, जो प्रमाण प्रावै, तितना जधन्य गृहीत ग्रहण काल विर्ष मिलाइए, तब अधन्य पुद्गल परिवर्तन का काल हो है । बहुरि तिसतै गृहीत ग्रहण का उत्कृष्ट काल भनत गुणा है, बहुरि तातें संपूर्ण पुदगल परिवर्तन का उत्कृष्ट काल किछ, अधिक है । उत्कृष्ट गृहीत ग्रहण काल की अनंत का भाग दीए, जो प्रमाण प्रादे, तितना उत्कृष्ट गृहीत ग्रहण काल विर्षे मिलाइए, तब उत्कृष्ट पुद्गल परिवर्सम का काल हो है । इहां अगृहीत ग्रहण काल अर मिश्न ग्रहण काल विर्षे जघन्य उत्कृ