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। मोम्मदसार श्रीबहाण्ड गाथा ५४८-५४६
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चित्रा भूमि विष तिष्ठता तिर्यंच मनुष्यनि का उपपाद ईशान पर्यंत ही संभव है, ताते किंचित् ऊन डेढ भागमात्र ही स्पर्श कहा है । बहुरि गाथा विषं चकार का ह्या है, ताते तेजोलेश्या का उत्कृष्ट अंश करि मर, तिनकै सनत्कुमार - माहेंद्र स्वर्ग का अंत का चन नामा इंद्रक संबंधी श्रेणीबद्ध विमाननि विर्षे उत्पत्ति केई प्राचार्य कहै हैं । तिनि का अभिप्राय करि यथा संभव तीन भागमात्र भी स्पर्श संभव है । किछ नियम नाहीं। इस ही वास्ते सूत्र विर्षे चकार कह्या । जैसे पीतलेश्या विर्षे स्पर्श कहा।
पम्मस्सय सवारणसमुग्धावदुर्गसु होदि पढमपदं । . अडचोदसभागा वा, देसूरणा होति णियमेण ॥५४८॥
पद्मायाश्च स्वस्थानसमुद्घातद्विकयोर्भवति प्रथमपदम् । - अष्ट चतुर्दशभागा वा; 'देशोना भवंति नियमेन ॥५४८१॥
टीका - पालेश्या के स्वस्थान स्वस्थान विर्षे पूर्वोक्तप्रकार लोक के असंख्यातवें भाग मात्र स्पर्श जानना । बहुरि बिहारवत्स्वस्थान अर वेदना • कषाय - बैंक्रियिकसमुद्धात इनिविर्ष किंचित् ऊन चौदह भाग विर्षे पाठमात्र स्पर्श जानना । बहुरि मारणांतिक समुद्घात विष भी. तैसें ही किचित् ऊन आठ चौदहवां भागमात्र स्पर्श जानना; जातें पद्म लेश्यावाले भी देव पृथ्वी, अप्, वनस्पति विर्षे उपजै हैं । बहुरि तेजस पाहारक समुद्धात विर्षे संख्यात धनांगुल प्रमाणस्पर्श जानना । बहूरि केवल समुद्घात इस लेश्या विर्षे है नाहीं।।
उववादे पढमपवं, पणचोद्दसभागयं च देसूरणं ।
___ उपपाचे प्रथमपदं, पंचचतुर्दशभागकश्च देशोनः ।
टीका - यह आधा सूत्र है । उपपाद विर्षे स्पर्श चौदह भाग विर्षे पंच भाग किछू घाटि जानना, ज़ातें पद्मलेश्या शतार - सहस्रार पर्यंत संभव है। सो शतारसहस्रार मध्यलोक ते पांच राजू उंचा है । असे पद्मलेश्या विर्षे स्पर्श कहा।
सुक्कस्स य तिठाणे, पढमो छच्चोदसा होणा ॥५४६॥
शुक्लायाश्च त्रिस्थाने, प्रथमः षट्चतुर्दशाहीनाः ॥५४॥ टीका - शुक्ललेश्यावाले जीवनि के स्वस्थानस्वस्थान विर्षे तेजोलेश्यावत् लोक का असंख्यातवां भाग प्रमाण स्पर्श है । बहुरि बिहारवत्स्वस्थान विर्षे अर वेदना,
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