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सम्यम्झानचन्द्रिका पोठिका
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- बहुरि अधःकरण का वर्णन है। तहां विशुद्धता की वृद्धि आदि च्यारि आवश्यकनि का, अर तहां संभवते परिणाम, योग, कषाय, उपयोग, लेश्या, वेद; पर प्रकृति, स्थिति, अनुभाग, प्रदेशरूप कर्मनि का सत्त्व, बंध उदय, तिनका वर्णन है ।।
बहरि अपूर्वकरण का वर्णन है । तहां संभवते स्थितिकांडकघात, अनुभागकांडकघात, गुरणश्रेणी, गुणसंक्रम इनका विशेष वर्णन है। पर इहां प्रकृतिबंध की व्युच्छित्ति हो है, तिनका वर्णन है। इहात लगाय क्षपक श्रेणी विर्षे जहां-जहां जैसा-जैसा स्थितिबंधापसरण, अर स्थितिकांडकघात, अनुभागकांडकघात पाइए पर इनको होते जैसा-जैसा स्थितिबंध, अर स्थितिसत्त्व अर अनुभागसत्त्व रहै, तिनका बीच-बीच वर्णन है, सो कथन होगा तहां जानना ।।
___ बहुरि अनिवृत्तिकरण का कथन है । तहां स्वरूप, गुणश्रेणी, स्थितिकांडकादि का वर्णन करि कर्मनि का क्रम लीए स्थितिबंध, स्थितिसत्त्व करने रूप क्रमकरण का वर्णन है । बहुरि गुणश्रेणी विर्षे असंख्यात समयप्रबद्धनि की उदीरणा होने लगी, ताका वर्णन है।
____बहुरि प्रत्याख्यान-अप्रत्याख्यानरूप पाठ कषाय नि के खिपावने का विधान वर्णन है । बहुरि निद्रा-निद्रा आदि सोलह प्रकृति खिपावने का विधान वर्णन है । बहुरि प्रकृतिनि को देशवाती स्पर्द्धकनि का बंध करने'रूप देशपातीकरण का वर्णन है । बहुरि च्यारि संज्वलन, नत्र नोकषायनि के केतेइक निषेकनि का अभाव करि अन्यत्र निक्षेपण करनेरूप अंतरकरण का वर्णन है । बहुरि नपुंसकवेद खिपावने का विधान वर्णन है । तहां संक्रम का वा युगपत् सात क्रियानि का प्रारंभ हो है, तिनका इत्यादि वर्णन है। बहुरि स्त्रीवेद क्षपणा का वर्णन है । बहुरि छह नोकषाय पर पुरुषवेद इनकी क्षपणा का विधान वर्णन है । बहुरि अश्वकर्णकरणसहित अपूर्वस्पर्द्धक करने का वर्णन है । तहां पूर्वस्पर्द्धक जानने कौं वर्ग, वर्गरणा, स्पर्द्धकनि का अर तिनविषं देशघाती, सर्वधातिनि के विभाग का, वा वर्गणा की समानता, असमानता प्रादिक का कथन करि अश्व करण के स्वरूप, विधान क्रोधादिकनि के अनुभाग का प्रमाणादिक का अर अपूर्वस्पर्द्धकनि के स्वरूप प्रमाण का तिनविर्षे द्रव्य अनुभागादिक का, तहां समय-समय संबंधी क्रिया का वा उदयादिक का बहुत वर्णन है ।. ..
बहुरि कृष्टिकरण का वर्णन है । तहां क्रोधवेदककाल के विभाग का, पर बादरकृष्टि के विधान विर्षे कृष्टिनि के स्वरूप का, तहां बारह संग्रहकृष्टि, एक-एक संग्रहकृष्टि