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HEARTनयन्त्रिका भावादी
प्रवासी देवनि करि कीया मारणांतिक दंड का घनरूप क्षेत्रफल प्रतरांगुल का संख्यातवां भाग करि तीन राजू की गुणें जो प्रमाण होइ, तितना है। इसकरि दूर मारगांतिक समुद्घातवरले जीवनि का प्रमाण कह्या था, ताकौं गुरिगए, तब मारणांतिक समुद्धात विर्षे क्षत्र का प्रमरण होइ, बहुरि उपपाद वि तिर्यच जीवनि करि कीया सनत्कुमार माहेंद्र प्रति उपपाद रूप दंड, सो तीन राजू लंबा, संख्यात सूच्यंगुल प्रमाण चौडा वा ऊंचा है । ताका क्षेत्र फल संख्यात प्रतरांगुल करि गुण्या हूवा तीन राजू प्रमाण एक जीव अपेक्षा क्षेत्र हो है । इसकरि उपपाद वालों के प्रमाण कौं गुण, उपपाद विर्षे क्षेत्र का प्रमाण हो है । बहरि तैजस अरु पाहारक समुदयात विर्षे क्षेत्र जैसे तेजोलेश्या के कथान विर्षे कहा है, तैसे इहां भी संख्यात धनांगुल करि संख्यात जीवनि की गुण, जो प्रमाण होइ, तितना जानना । बहुरि केवल समुद्घात इस लेश्या विर्षे होता ही नाहीं; असे पद्मलेश्या का क्षेत्र कह्या । आमें शुक्ललेश्या विर्षे क्षेत्र कहिए हैं।
संख्या अधिकार विषं जो सुक्ललेश्यावालों का प्रमाण कद्या, ताको पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण स्वस्थान स्वस्थान विर्षे जीव हैं । अवशेष एक भाग रह्या, ताकी पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए तहाँ बहुभाग प्रमाण विहारवत्स्वस्थान विर्षे जीव हैं । अवशेष एक भाग रह्या, ताकौं पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहाँ बहुभाग प्रमाण वेदनासमुद्घात विर्षे जीव हैं। अवशेष एक भाग रह्या, ताकौं पल्य का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां बहुभाग प्रमाण कषाय समुद्धात विषं जीव हैं । अवशेष एक भाग रह्या, तिस प्रमाण वैक्रियिक समुद्धात विर्षे जीव हैं । तहां शुक्ललेश्यावाले देवनि की मुख्यता करि एक जीव का शरीर की अवगाहना तीन हाथ ऊंची इसके दशवें भाग मुख की चौडाई याका वासो ति गुणो परिही इत्यादि सूत्र करि क्षेत्रफल कीजिए, सब संख्यात धनांगुल प्रमाण होइ, इसकरि स्वस्थान स्वस्थानवाले जीवनि का प्रमाण कौं गुरिगए, तब स्वस्थान स्वस्थान विर्षे क्षेत्र का परिमारा होइ । बहुरि मूल शरीर की अवगाहना तें साढा च्यारि गुणा एक जीव के वेदना पर कषाय समुद्धात विर्षे क्षेत्र है । इस साढा च्यारि गुणा धनांगुल का संख्यातवां भाग करि वेदना समुंद्धातयाले जीवनि का प्रमाण कौं गुणिये, सब वेदना समुद्धात विष क्षेत्र हो है। पर कषाय समुद्धातवाले जीवनि का प्रमाण कौं गुण, कषायसमुद्घार वि क्षेत्र हो है । बहुरि एक देव के विहार करतें अपने मूल शरीर से बाह्य निकसि उत्तर विक्रिया करि