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लब्धिसार-क्षपणासार सम्बन्धी प्रकरण
लब्धिसार-क्षपणासार सम्बन्धी प्रकरण
बहुरि ऐसा विचार भया जो लब्धिसार घर क्षपणासार नामा शास्त्र है, तिन विषै सम्यक्त्व का अर चारित्र का विशेषता लीए बहुत नीकै वर्णन है । पर तिस वन को जानें मिथ्यादृष्ट्यादि गुणस्थाननि का भी स्वरूप नीकै जानिए हैं, सो इनका जानना बहुत कार्यकारी जानि, तिन ग्रंथनि के अनुसारि किछू कथन करना । तातें लब्धिसार शास्त्र के गाथा सूत्रनि की भाषा करि इस ही टीका विष मिलाइएगा । तिस ही के क्षपक श्रेणी का कथन रूप गाथा सूत्रनि का अर्थ विषै क्षपणासार का अ गर्भित होगा ऐसा जानना ।
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हो है तिन ग्रंथनि की जुदी ही टीका क्यों न करिए ? याही वि कथन करने का कहा प्रयोजन ?
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ताका समाधान गोम्मटसार विषै कह्या हुवा केइक अनि को जाने बिना तिन ग्रंथनि विष कह्या हुवा केतेइक अर्थनि का ज्ञान न होय, वा तिन ग्रंथनि विषं कह्या हुवा भर्थ कौं जानें इस शास्त्र विषै कहे हुए गुणस्थानादिक केलेइक अर्थनि का स्पष्ट ज्ञान होइ, सो ऐसा संबंध जान्या अर तिन ग्रंथति विषै कहे अर्थ कठिन हैं, सो जुदा रहे प्रवृत्ति विशेष न होइ तातें इस ही विषे तिन ग्रंथनि का अर्थ लिखने का? विचार कीया है । सो तिस विषै प्रथमोपशम सम्यक्त्वादि होने का विधान धाराप्रवाह रूप वर्णन है । तातें ताकी सूचनिका लिखें विस्तार होइ, कथन श्रा होयहोगा। तातें इहां अधिकार मात्र ताकी सूचनिका लिखिए हैं ।
प्रथम मंगलाचरण करि प्रकार कारण का वा प्रकृतिबंधापसररण, स्थितिबंधारण, स्थितिकांडक, अनुभागकांडक, गुणश्रेणी फालि इत्यादि, केतीइक संज्ञानि का स्वरूप वर्णन करि प्रथमोपशम सम्यक्त्व होने का विधान वर्णन हैं ।
तहां प्रथमोपशम सम्यक्त्व होने योग्य जीव का अर पंचलब्धिनि के नामादिक कहि, तिनके स्वरूप का वर्णन है । तहां प्रायोग्यता लब्धि का कथन विषै जैसे स्थिति घटै है अर तहां च्यारि गति अपेक्षा प्रकृतिबन्धापसरण हो 'है ताका, अर स्थिति, अनुभाग, प्रदेशबंध का वर्णन है । बहुरि च्यारि गति अपेक्षा एक जीव के युगपत् संभवता मंगसहित प्रकृतिनि के उदय का, अर स्थिति, अनुभाग, प्रदेश के
१. प्रति में 'अर्थ लिखने का' स्थान पर 'अनुसारि किछु कथन' ऐसा पाठ मिलता है ।