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HINनतिका माषाटीका । होइ । असे सातवें नरक अवधि क्षेत्र एक कोश, छठे ड्या, कोश, पांचवें दोय कोश, चौथे अढ़ाई कोश, तीसरे तीन कोश, दूसरे साढे तीन कोश, पहले च्यारि कोश प्रमाण एक योजना जानना।
आगें तिथंचगति मनुष्यगति विर्षे कहै हैं - तिरिये अवरं प्रोधो, तेजोयंते य होदि उक्कस्सं । मण ए अोघं देवे, जहाकम सुणह वोच्छामि ॥४२५॥
तिरश्चि प्रवरमोघः, तेजोऽते च भवति उत्कृष्टं ।
अरे प्रोघं-देवे, यथाक्रम श्रृणुत वक्ष्यामि ॥४२५॥ टीका - तिथंच जीव विर्षे जघन्य देशावधिज्ञान हो है । बहुरि यात लगाइ उत्कृष्टपने सैजसशरीर जिस देशावधि के भेद का विषय है, तिस भेद पर्यंत सर्व सामान्य अवधिज्ञान के वर्णन विर्षे जे भेद कहें, ते सर्व हो हैं । बहुरि मनुष्य गति विर्षे जघन्य देशावधि तें सर्वावधि पर्यंत सामान्य अवधिज्ञान विर्षे जेते भेद कहे,तिनि सर्व भेदनि की लीए, अवधिज्ञान हो है ।
बहुरि देवगति विर्षे जैसा अनुक्रम है, सो मैं कहों हो, तुम सुनहु - पणवीसजोयणाई, विवसंतं च य कुमारभोम्माणं । संखेज्जगुणं खेत्तं, बहुगं कालं तु जोइसिगे ॥४२६॥
पंचविंशतियोजनानि, दिवसांतं च च कुमारभौमयोः ।
संख्यातगुण क्षेत्रां, बहुकः कालस्तु ज्योतिष्के ॥४२६॥ टीका - भवनवासी अर व्यन्तर, इनिकै अवधिज्ञान का विषयभूत जघन्यपने क्षेत्र तो पचीस योजन है। अर काल किछू एक घाटि एक दिन प्रमाण है। बहुरि ज्योतिषी देवनि के क्षेत्र तौ इस क्षेत्र से असंख्यात गुणा है, अर काल इस काल ते बहुत है।
असुराणमसंखेज्जा, कोडीनो सेसजोइसंताणं । संखातोदसहस्सा, उक्कस्सोहीण विसनो दु॥४२७॥