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Niraram
-Rampattra
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[ गोम्पसार जीवाण्ड गाया ४१७ टीका - परमावधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य की अपेक्षा जितने भेद कहे, अग्निकाय की अवगाहना के भेदनि का प्रमाण ते अग्निकाय के जीवनि का परिमाण फौं मुरिगए, तावन्मात्र द्रव्य की अपेक्षा भेद कहे, सो एतावन्मान ही परमावधिज्ञान का विषयभूत क्षेत्र की अपेक्षा वा काल की अपेक्षा भेद हैं। जहां द्रव्य की अपेक्षा प्रथम भेद है, तहां ही क्षेत्र - काल की अपेक्षा भी प्रथम भेद है। जहां दुसरा भेद द्रव्य की अपेक्षा है, तहां क्षेत्र - काल अपेक्षा भी दूसरा ही भेद है। असे अंत का भेद पर्यंत जानना बहुरि जघन्य तें लगाइ उत्कृष्ट पर्यंत एक एक भेद विर्षे असंख्यात गुगणा लामात गुणा क्षेत्र व काल जानना ।
कैसा असंख्यात गुणा जानना ? सो कहैं हैं
प्रावलिअसंखभागा, इच्छिदगच्छवच्छधणमाणमेत्ताश्रो। देसावहिस्स खेत्त , काले वि य होंति संवग्मे ॥४१७॥
आवल्यसंख्यभागा; इच्छितगच्छधनमानमात्राः ।
देशावधेः क्षेत्रे, कालेऽपि च भवति संवर्मे ।।४१७॥ .. टोका - परमावधिज्ञान का विवक्षित क्षेत्र का भेद विर्षे या विवक्षित काल का भेद विर्षे जो तिस भेद का संकलित धन होइ, तितना प्रावली का असंख्याता भाग मांडि, परस्पर गुणन कीया, जो प्रमाण होइ, सो विवक्षित भेद विर्षे गुणकार जानना । इस गुणकार करि देशावधि ज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र कौं गुण, परमावधि विर्षे विवक्षित भेद विर्षे क्षेत्र का परिमारण होइ, अर देशावधिज्ञान का उत्कृष्ट काल कौं गुणे, विवक्षित भेद विर्षे काल का परिमाण होइ ।
संकलित धन कहा कहिए -
जेथवां भेद विवक्षित होइ, तहां पर्यंत एक तें लगाइ एक एक अधिक अंक मांडि, तिन सब अंकनि को जोड़ें, जो प्रमाण होइ, सो संकलित धन जानना । जैसे प्रथम भेद विर्षे एक-ही अंक है । याके पहिले कोई अंक नाहीं । तात प्रथम भेद विर्षे संकलित धन एक जानना । बहुरि दूसरा भेद विर्षे एक अर दूवा जोडिए, तब संकलित धन तीन भया । बहुरि तीसरा भेद विर्षे एक, दोय, तीन अंक जोडें, संकलित धन छह भया । बहुरि चौथा भेद विर्ष च्यारि और जोडे, संकलित धन दश भया ।
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