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[ गोम्मटसार शौययाण्ड गाथा ३६२-३६३ आगे वर्गणा का परिमाण कहैं हैं -- वग्गणरासिपमाणं, सिद्धाणंतिमपमाणमत्तं पि । दुगसहियपरमभेदपमाणवहारारण संवग्गो ॥३६२॥
वर्गणाराशिप्रमाणं, सिद्धानंतिमप्रमाणमात्रमपि ।
विकसहितपरमभेदप्रमाणावहाराणां संवर्गः ॥३९२॥ टीका - कार्मारणावर्गणा राशि का प्रमाण सिद्धराशि के अनंतवें भागमात्र है । तथापि परमावधिज्ञान के जेते भेद हैं, तिनमें दोय मिलाएं, जो प्रमाण होइ, तितना ध्र वहार मांडि, परस्पर गुणन कीये, जो प्रमाण होइ, तितना परमाणूनि का स्कंधरूप कार्माणवर्गणा जाननी । जाते कार्माणवर्गणर को एक बार ध्रुवहार का भाग दीएं, उत्कृष्ट देशावधि का विषय भूत द्रव्य होइ, पीछे परमावधि के जितने भेद हैं, तेती बार क्रम से ध्रुबहार का भाग दीएं, उत्कृष्ट परमावधि का विषयभूत द्रव्य होइ, ताकी एक बार ध्रुवहार का भाग दीएं, एक परमाणू मात्र सर्यावधि का विषय हो है।
ते परमावधि के भेद कितने हैं ? सो कहिए हैं - परमावहिस्स भेदा, सग-ओगाहण-वियप्प-हद-तेऊ। इदि धुवहार बग्गरणगुणणारं वग्गणं जाणे ॥३६३।।
परमावधेर्भेदाः, स्वकावगाहनविकल्पहततेजसः ।
इति ध्रुवहारं वर्गरणागुणकार वर्गणां जानीहि ॥३९३॥ टीका ---- अग्निकाय के अवगाहना के जेते भेद हैं; तिनि करि अग्निकाय के जीवनि का परिमारण कौं गुगा, जो परिमाण होइ, तिलना परमावधिज्ञान का विषयभत द्रव्य की अपेक्षा भेद है । सो अग्निकाय की जघन्य अवगाहना का प्रदेशनि का परिमाण कौं अग्निकाय की उत्कृष्ट अवगाहना का परिमाण विर्षे घटाए, जो प्रमाण होइ, तिनमें एक मिलाएं, अग्निकाय की अवगाहना के भेदनि का प्रमाण हो है । सो जीवसमास का अधिकार विर्षे मत्स्यरचना करी है, तहां कह ही हैं। बहरि अग्निकाय का जीवनि का परिमाण कायमार्गणा का अधिकार विर्षे कहा है ; सो जानना। इनि दोऊनि कौं परस्पर गुणे, जो प्रमाण होइ, तितना परमावधिज्ञान का विषयभूत
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