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. गोम्मटसार जीवकाण्ड माश ३८३-३८४
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असंख्यात पाइए हैं; तिनि सबनि कौं जान है । बहुरि इस प्रमाण से एक, दोय आदि जिस स्कंधनि के बंधते प्रदेश होंहि तिनिकौं तो जाने ही जान; जाते सूक्ष्म को जानें स्थूल का जानना सुगम है । बहुरि जो पूर्वे जघन्य अवधिज्ञान संबंधी द्रव्य कहा था, तिसकी अवगाहना का प्रमाण, तिस जघन्य अवधि का क्षेत्र का प्रमाण के असंख्यातवें भागमात्र है, तथापि धनांगुल के असंख्यातवें भागमात्र ही है । अर. वाकै भुज, कोटि, वेध का भी प्रमाण सूच्चंगुल के असंख्यातवें भागमात्र है। असंख्यात के भेद घने हैं, ताते यथासंभव जानि लेना।
आवलिअसंखभागं, तीवभविस्सं च कालदो अवरं । प्रोही जाणदि भावे, कालअसंखेज्जमागं तु ॥३८३॥
प्रारभागमतीभविष्यच्च कालतः प्रथरम् ।
अवधिः जानाति भावे, कालसंख्यातभागं तु ॥३८३॥ टीका - जघन्य अवधिज्ञान है, सो काल लैं प्रावली के असंख्यातवें भागमात्र अतीत, अनागत काल कौं जान है । बहुरि भाव ते भावली का असंख्यातबरं भागमात्र काल प्रमाण का असंख्यातवां भाग प्रमाण मात्र, तिनकौं जाने हैं। ..
भावार्थ - जघन्य अवधिज्ञान पूर्वोक्त क्षेत्र विर्षे, पूर्वोक्त एक द्रव्य के प्रायली का असंख्यातवां भाग प्रमाण अतीत काल विर्षे वा तितना ही अनामत काल विर्षे जे आकाररूप व्यंजन पर्याय भए, अर होहिंगे तिनकौं जान हैं, जातै व्यवहार काल के अर द्रव्य के पर्याय ही की पलटन हो है । बहुरि पूर्वोक्त क्षेत्र विर्षे पूर्वोक्त द्रव्य के वर्तमान परिगमन रूप अर्थ पर्याय हैं । तिनि विर्षे प्रायली का असंख्यातवां भाग का असंख्यातवां भाग प्रमाण, जे पर्याय, तिनि कौं जान है । अस जघन्य देशावधि ज्ञान के विषय भूत द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावनि की सीमा - मर्यादा का भेद कहि ।
भाग तिस अवधिज्ञान के जे द्वितीयादि भेद, तिनिकों च्यारि प्रकार विषय भेद कहै हैं ---
अवरव्यादुपरिमदव्ववियप्पाय होहि धुवहारो। सिद्धाणंतिमभागो, अभवसिद्धादणंतगुणो ॥३८४॥ .. .
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