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ऊंचाई का प्रमाण कौं, वेध कहिए ।
प्रवृत्ति बिष लंबाई, ऊंचाई, चौड़ाई तीन नाम हैं । सो इनिका क्षेत्र, खंड विधान तें समान प्रमाण करि क्षेत्रफल कीए, जो प्रमाण आवे, तितना क्षेत्रफल जानना । जघन्य श्रवधिज्ञान के क्षेत्र का अर जघन्य अवगाहना रूप क्षेत्र का क्षेत्रफल समान है, इतना तो हम जानें हैं । श्रर भुज, कोटि, वेध का प्रमाण कैसे है ? सो हम जानते नाहीं, अधिक ज्ञानी जाने ही हैं ।
[ गोम्मटसार जौवकाण्ड गाथा ३५०
श्रवरोगाहणमारणं, उस्सेहंगुलप्रसंखभागस्स ।
सूइस्स य घणपदरं, होदि हु तखेत्तसमकरणे ॥ ३८० ॥
टीका कहा, सो कैसा
प्रवरावगाहनमानमुत्सेधांगुला संख्यभागस्य ।
सूचेश्च धनप्रतरं भवति हि तत्क्षेत्रसमीकरणे ॥३८०॥
इहां कोऊ प्रश्न करें कि जघन्य श्रवगाहनारूप क्षेत्र का प्रमाण है ?
ताका समाधान
जघन्य अवगाहना रूप क्षेत्र का आकार कोऊ एक नियम रूप नाहीं तथापि क्षेत्र, खंड विधान करि सदृश कीजिए, तब भुज का वा कोटि का वावेव का प्रमाण उत्सेधांगुल कौं योग्य असंख्यात का भाग दीएं, जो एक भाग का प्रमाण होइ, तितना जानना । बहुरि भुज कौं वा कोटि कौं वा वेध को परस्पर गुरौं, घनांगुल के असंख्यात भागमात्र प्रकट क्षेत्रफल भया, सो जघन्य श्रवगाहना का प्रमाण है । याही के समान जधन्य अवधिज्ञान का क्षेत्र है । इहां क्षेत्र, खंड विधान करि समीकरण का उदाहरण और भी दिखाइए है ।
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जैसे लोकाकाश ऊंचाई, चौड़ाई, लंबाई विषे होनाधिक प्रमाण लीए है । ताका क्षेत्रफल फैलाइए, तब तीन से तेतालीस राजू प्रमाण घनफल होइ, अर जो हीनाधिक क बधाइ घटाइ, समान प्रमाण करि सात सात राजू की ऊंचाई, लंबाई, चौड़ाई कल्पि परस्पर गुरणन करि क्षेत्रफल कीजिए। तब भी तीन से तेलालीस ही राजू होइ । जैसे ही इहां जघन्य क्षेत्र की लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई हीनाधिक प्रमाण लीएं है । परि क्षेत्र खंड विधान करि समीकरण कीजिए, तब ऊंचाई. का वा चौड़ाई का का लंबाई का प्रभाग उत्सेधांगुल के प्रसंख्यातवें भागमात्र होइ ।
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