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[ गोमटसार जीवकाम या ३७६-३७७ मिथ्यात्व अर अधिरति कौं प्राप्त न हो है । जाते देशावधि तो प्रतिपाती भी है; अप्रतिपाती भी है। परमावधि, सर्वावधि अप्रतिपाती ही हैं।
दज्वं खेतं कालं, भावं पडि वि जाणदे प्रोही । अवरादुक्कस्सो त्ति य, बियप्परहिदो दु सम्बोही ॥३७६॥
द्रव्यं क्षेत्र काल, भावं प्रति रूपि जानीते अवधिः ।
अवरावुरस्कृष्ट इति च, विकल्परहितस्तु सर्वावधिः ॥३७६।। टोका - अवधिज्ञान जघन्य भेद तें लगाइ उत्कृष्ट भेद पर्यंत असंख्यात लोक प्रमाण भेद धरै है; सो सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव प्रति मर्यादा लीए रूपी जो पुद्गल अर पुद्गल संबंध कौं घरै संसारी जीव, तिनिकौं प्रत्यक्ष जाने है । बहुरि सर्वावधिज्ञान है, सो जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद रहित, हानि - वृद्धि रहित, अवस्थित सर्वोत्कृष्टता को प्राप्त है, जाते अवधिज्ञानावरण का उत्कृष्ट क्षयोपशम तहां ही संभव है । ताते देशावधि, परमावधि के जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट भेद संभव है।
णोकम्मुरालसंचं, मज्झिमजोगोज्जियं सविस्सचयं । लोयविभत्तं जाणदि, अवरोही बव्वदो रिणयमा ॥३७७॥
नोकौ दारिकसंचयं, मध्यमयोगाजितं सबिनसोपचयम् ।
लोकविभक्तं जानाति, प्रवरावधिः द्रव्यतो नियमात् ॥३७७।। टीका - मध्यम योग का परिणमन ते निपज्या असा नोकर्मरूप औदारिक शरीर का संचय कहिए द्वधं गुणहानि करि औदारिक का समयप्रबद्ध कौं गुणिए, तिहिं प्रमाण औदारिक का सत्तारूप द्रव्य, बहुरि सो अपने योग्य विस्रसोपचय के परमाणूनि करि संयुक्त, ताकी लोकप्रमाण असंख्यात का भाग दीएं, जो एक भाग मात्र द्रव्य होइ, तावन्मात्र ही द्रव्य को जघन्य अवधिज्ञान जान है । यातें अल्प स्कंध कौं न जाने है; जघन्य योगनि तें जो निपज है संचय, सो यातें सूक्ष्म हो है; तातै तिस कौं जानने की शक्ति नाहीं । बहुरि उत्कृष्ट योगनि तें जो निपज है संचय, सो यात स्थूल है, ताकी जान ही हैं जातें जो सूक्ष्म कौं जानें, ताके उसते स्थूल कौं जानने में किछू विरुद्ध (विरोध)नाहीं । तातै यहां मध्यम योगनि करि निपज्या असा औदारिक शरीर का संचय कह्या । बहुरि विस्रसोपचय रहित सूक्ष्म हो है, तातें वाक जानने की शक्ति
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