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[ गोम्मटसार जोनका गाव ३७३
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मति घरी वह अवधिज्ञान साथि हो रहे है अर उस क्षेत्र तें जीव और कोई भरत, ऐरावत, विदेहादि क्षेत्रनि विषै गमन करे, तो वह ज्ञान अपने उपजने का क्षेत्र ही fai विनष्ट होइ, सो क्षेत्राननुगामी कहिए। बहुरि जो अवधिज्ञान जिस पर्याय वि उपया होइ, तिस पर्याय विषे तो जीव और क्षेत्र विषै तो गमन करो वा मति करौ विज्ञान साथि र अन्य कोई देव मनुष्य आदि पर्याय धर तो अपने उपजने का पर्याय विषे विनष्ट होइ, सो भवाननुगामी कहिये । बहुरि जो raftart और क्षेत्र विषै वा और पर्याय विषे जीव को प्राप्त होते साथि न रहे; अपने उपजने का क्षेत्र वा पर्याय विषे हो विनष्ट होइ; सो उभयाननुगामी कहिए ।
बहुरि जो अवधिज्ञान सूर्यमंडल की ज्यों घटै बधै नाहीं, एक प्रकार ही रहे; सो अवस्थित कहिए ।
बहुरि जो अवधिज्ञान कदाचित् बधै कदाचित् घटे, कदाचित् अवस्थित रहै; सो अवस्थित कहिये ।
बहुरि जो अवधिज्ञान शुक्ल पक्ष के चंद्रमंडल की ज्यों बघता बघता अपने उत्कृष्ट पर्यंत बधे, सो वर्धमान कहिए ।
बहुरि जो अवधिज्ञान कृष्ण पक्ष के चंद्रमंडल की ज्यों घटता घटता अपने नाश पर्यंत घटै; सो होयमान कहिए । असे गुणप्रत्यय अवधिज्ञान के छह भेद कहे ।
बहुरि तैसे ही सामान्यपने अवधिज्ञान तीन प्रकार हैं- देशावधि, परमावधि, सर्वावधि ए तीन भेद हैं । तहां गुणप्रत्यय देशावधि ही छह प्रकार जानना !
raveen ओही, देसोही होदि परमसव्वोही । गुरuveesो खियमा, देसोही वि य गुणे होबि ॥३७३॥
rastrustafधः, देशावधिः भवति परमसर्वावधिः । Terrrrest नियमात्, देशावधिरपि च गुणे भवति ॥ ३७३ ॥
टीका भवप्रत्यय अवधि तौ देशावधि हो है, जाते देव, नारकी, तीर्थंकर इनके परमावधि सर्वावधि होइ नाहीं ।
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गृहस्थ,
बहुरि परमावधि पर सर्वावधि निश्वय सौं गुणप्रत्यय ही है; जातें संयमरूप विशेष गुरण बिना न होंइ ।