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सभ्याज्ञानचन्द्रिका मापाटीका ]
धर्म अपेक्षा सप्त भंग हो हैं । अभेद अपेक्षा स्थात् एक है। भेद अपेक्षा स्थात् अनेक हैं । क्रम ते अभेद भेद अपेक्षा स्यात् एक - अनेक है । युगपत् अभेद भेद अपेक्षा स्यात् प्रवक्तव्य है । अभेद अपेक्षा वा युगपत् अभेद-भेद अपेक्षा स्यात एक प्रवक्तव्य है। भेद अपेक्षा वा युगपत् अभेद भेद अपेक्षा स्यात् अनेक अवक्तव्य है । क्रम से प्रभेद -- भेद अपेक्षा वा युगपत् अभेद - भेद अपेक्षा स्यात् एक - अनेक अबक्तव्य है। अॅसें ही नित्य अनित्य नै आदि दे अनंत धर्मनि के सप्त भंग हैं । तहां प्रत्येक भंग तीन अस्ति, नास्ति, प्रवक्तव्य, अर द्विसंयोगी भंग तीन अस्ति नास्ति, अस्ति अवक्तव्य, नास्ति अवक्तव्य, अर त्रिसंयोगी एक प्रस्ति - नास्ति - प्रवक्तव्य । इनि सप्त भंगनि का समुदाय सो सप्तभंगी सो प्रश्न के वश तें एक ही वस्तु विर्षे अविरोधपनै संभवती नाना प्रकार नयनि की मुख्यता, गौरणता करि प्ररूपण कीजिए है । इहां सर्वथा नियमरूप एकांत का अभाव लीए कथंचित् असा है अर्थ जाका सो स्यात् शब्दः जानना । इस अंग के दोय लाख ते तीस कौं गुरिगए सो साठि लाख (६००००००)
बहुरि ज्ञाननि का है प्रवाद कहिए प्ररूपण, जिस विर्षे असा ज्ञानप्रवाद नामा पांचमां पूर्व है । इस विष मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यय, केवल ए पांच सम्थग्ज्ञान अर कुमति, कुश्रुति, विभंग ए तीन कुज्ञान इनिका स्वरूप, संख्या का विषय का फल इत्यादि अपेक्षा प्रमाण अप्रमाणता रूप भेद वर्णन कीजिए है । पाके दोय लाख ते पचास कौं गुण, एक कोटि होइ तिन में स्यों एक घटाइए जैसे एक धाटि कोडि (६६६६६६६) पद हैं । गाथा विष पंचम रूऊरण असा कहा है । तातै पांचमां अंग में एक घटाया अन्य संख्या गाथा अनुसारि कहिए ही है ।
बहुरि सत्य का है प्रवाद कहिए प्ररूपण इस विर्षे असा सत्यप्रवाद नामा छठा पूर्व है । इस विर्षे वचन गुप्ति - बहुरि वचन संस्कार के कारण, बहुरि बचन के प्रयोग, बहुरि बारह प्रकार भाषा, बहुरि बोलनेवाले जीवों के भेद, बहुरि बहुत प्रकार मृषा वचन, बहुरि दशप्रकर सत्य वचन इत्यादि वर्णन है । तहां असत्य न बोलना वा. मौन धरना सो सत्य वचन गुप्ति कहिए ।
बहुरि धचन संस्कार के कारण दोय एक तौ स्थान, एक प्रयत्न । तहां जिनि स्थानकनि ते अक्षर बोलें, जाहि ते स्थान पाठ हैं - हृदय, कंठ, मस्तक, जिह्वा का मूल, दंत, नासिका, होठ, तालथा । जैसे अकार, क वर्ग, ह कार, विसर्ग इनिका कंठ स्थान है जैसे अक्षरनि के स्थान जानने।