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मम्यशानचन्त्रिक भाषाटीका !
प्रागै जो अंगबाह्य प्रकीर्गक, तिनिके अक्षरनि की संख्या कहै हैं -
अडकोडिएयलक्खा, अट्ठसहस्सा य एयसदिगं च । .. पण्णतरि वण्णाओ, पइण्णयाणं पमाणं तु ॥३५१॥
अष्टकोटय कलक्षाणि, अष्टसहस्राणि च एकशतकं च ।
पंचसप्ततिः वराः, प्रकीर्णकानां प्रमासं तु ॥३५१॥ टीक - बहरि सामायिकादिक प्रकीर्णकनि के अक्षर आठ कोडि एक लाख आठ हजार एक सौ पिचहत्तरि (८०१०८१७५) जानने ।
आगे इस अर्थ के निर्णय करने के अथि च्यारि गाथानि करि अक्षरनि की प्रक्रिया कहै हैं -
तेत्तीस वेजिरणाइं, सत्तावीसा सरा तहा भणिया। चत्तारि य जोगवहा, चउसट्ठी मूलवण्णाश्रो ॥३५२॥
प्रयस्त्रिशत व्यंजनानि, सप्तविंशतिः स्वरास्तथा भरिणताः । - चस्वारनं योगवहाः, चतुषष्टिः मूलवर्णाः ॥३५२॥
टीका - प्रो कहिये, हो भव्य ! तेतीस (३३) तो व्यंजन अक्षर हैं । आधी मात्रा जाके बोलने के काल विर्षे होइ, ताकौं व्यंजन कहिये - क, ख, ग, घ, ङ् ।
य, र, ल, न् । श, ष, स, ह ए तेतीस व्यंजन अक्षर हैं।
बहुरि सत्ताईस स्वर अक्षर हैं। अ, इ, उ, ऋ, लु, ए, ऐ, ओ, प्रो ए नव अक्षर, इनिके एक • एक के ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत तीन भेदनि करि गुण सत्ताईस भेद हो हैं । जैसे - अ, पा, प्रा३ । इ, ई, ई ३ । उ, ऊ, ऊ ३ । ऋ, ऋ, ऋ३ । लु, ल , ल ३ ए, ए, ए ३ । ऐ, ऐ, ऐ३ । प्रो, ओ, प्रो ३ । प्रौ, औ, औ ३ ! ए सत्ताईस स्वर हैं । जाकी एक मात्रा होय ताकौ ह्रस्व कहिये । जाकी दोय मात्र होइ, ताकौं दीर्घ कहिए । जाकी तीन मात्रा होइ ताकौं प्लुत कहिए ।।
बहुरि च्यारि योगवाह प्रक्षर हैं । अनुस्वर, विसर्ग, जिह्वामूलीय, उपध्मानीय तहां अं जैसा अक्षर अनुस्वार है । प्रः असा अक्षर विसर्ग है। कः असा अक्षर जिह्वामूलीय है । प: असा अक्षर उपध्मानीय है । ए चौसठि मूल अक्षर अनादिनि