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गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ३३१
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एक सौ बारा गुरगा छप्पन का भागहार हो है । इहां गुणाकार विर्षे इकतालीस इकतालीस परस्पर गुरणे, सोलह से इक्याती भये हैं । बहुरि भागहार विर्षे छप्पन कौं दोय करि गुणं, एक सी बारह भये । अगले छप्पन कौं एक करि गुण, छप्पन भये जानने । बहुरि इहां मुगाकार में एक दुदा मापिये, ताना साधिक जघन्य कौं एक सौ बारह गुणा छप्पन का भागहार मात्र घन जानना । अवशेष साधिक जघन्य कौं सोलह से अस्सी का गुणकार एक सौ बारा गुणां छप्पन का भागहार रह्या । तहाँ एक सौ बारह करि अपवर्तन कीयें साधिक जघन्य कौं पंद्रह का गुणकार छप्पन का भागहार भया । यामें प्रक्षेपक संबंधी प्रमाण जघन्य कौं इकतालीस का गुणकार अर छप्पन का भागहार मात्र मिलाएं अपवर्तन कोए, साधिक जघन्य मात्र वद्धि का प्रमाण भया । याम मूल साधिक जघन्य जोडे, लब्ध्यक्षर ज्ञान दूणां हो है । इहां प्रक्षेपक - प्रक्षेपक संबंधी पूर्वोक्त धन से ऋण संख्यात गुणा घाटि है । तातें किंचित् ऊन कीया, जो धन राशि, ताकौं अधिक कोए साधिक दूणा हो. हैं । बहुरि 'सत्त दशमं च भाग वा कहिए अथवा संख्यात (भाग) वृद्धि संयुक्त उत्कृष्ट संख्यात मात्र स्थानकनि कौं दश का भाग दीजिये । तहां सात भाग मात्र स्थान भए । तहां प्रक्षे. पंक पर प्रक्षेपक - प्रक्षेपक पर पिशुलि नामा तीन वृद्धि जोडें, साधिक जघन्य ज्ञान दूणा हो है । कैसे ?
सो कहिए है - साधिक जघन्य को एक बार उत्कृष्ट संख्यात का भाग दीये प्रक्षेपक हो है । सो गच्छ मात्र है । ताते याकौं उत्कृष्ट संख्यात का सात दशवां भाग करि गुरणे, उत्कृष्ट संख्यात का भाग दीएं, साधिक जघन्य कौं सात का गुणकार अर दश का भागहार हो है । बहुरि प्रक्षेपक - प्रक्षेपक एक घाटि मच्छ का एक बार संकलन धनमात्र हो है । सो साधिक जघन्य कौँ दोय बार उत्कृष्ट संख्यात को भाग दीएं, प्रक्षेपक - प्रक्षेपक होइ, ताकौं पूर्व सूत्र के अनुसारि एक घाटि सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात का अर सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात का तौ गुणकार अर दश दोय पर दश एक का भागहार भया । बहुरि पिशुलि दोय घाटि गच्छ का पर दोय बार संकलन धनमात्र हो है । सो साधिक जघन्य को तीन बार उस्कृष्ट संख्यात का भाय दीएं पिशुलि हो है । ताकौं पूर्व सूत्र के अनुसारि दोय धाटि सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात अर एक घाटि सात गुणा उत्कृष्ट संख्यात सातगुणा उत्कृष्ट संख्यात का तो सुरराकार पर दश तीन, दश दोय, दश एक का भागहार भया । इनि विर्षे पिलि का गुणकार विर्षे दोय घटाया था, तीहिं संबंधी प्रथम ऋण का प्रमाण साधिक
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