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[ गोम्मटसर फाण्ट गाथा ३३०.
भागवृद्धि हो है । जैसे एक बार षट्स्थान पतित वृद्धि होने विषै पूर्वोक्त प्रमाण लीएं एक एक वृद्धि हो है । दूसरी बार आदि विषै पहिले अष्टांक हो है । तार्के श्रागे ऊर्वक हो है । तातें एक ही ग्रष्टांक है; पैसा कया है ।
सव्वसमासो रियमा, ख्वाहियकंडयस्य बग्गस्स । द लिजिह रिद्दिट्ठ ॥ ३३० ॥
सर्वसमासो नियमात् रूपाधिककांडकस्य वर्गस्य । वृंदस्य च संवर्गो, भवतीति जिननिर्दिष्टम् ॥३३०० टीका पूर्व जो छहाँ वृद्धिनि का परिमारण कह्या तीहिं सर्व का जोड दीएं, रूपाधिक कडक कहिये । एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग ताका वर्ग श्रर घन, ताका संवर्ग कीएं संते, जो प्रमाण होइ, तितनां हो है । अँसा जिनदेवनि कहा है।
भावार्थ -- एक अधिक सूच्यंगुल का प्रसंख्यातवां भाग की दोय जायगा मांडि परस्पर गुणन कीये, जो परिमाण होय, सो तो रूपाधिक कांडक का वर्ग कहिए । बहुरि एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग कौं तीन जायया मांडि, परस्पर गुणन कीएं, जो परिमाण होइ, ताक रूपाधिक कांडक का घन कहिए। बहुरि इस वर्ग को पर पद को परस्पर गुगन कीएं, जो परिमाण होइ, अथवा एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग की पांच जायगा मांडि, परस्पर गुणन कीएं, जो परिमारण होइ, तितनी बार एक षट्स्थान [ पतित ] | वृद्धि विषे अनंत भागादिक वृद्धि हो है । जैसे अंक संदृष्टि करि पूर्वे यंत्र विष आठ का अंक एक बार लिख्या, अर सात का अंक दो बार लिख्या; मिलि तीन भए । बहुरि छह का अंक छह बार लिख्या;. मिलि तीन का वर्ग नव भया । बहुरि पंच का अंक अठारह बार लिख्या, मिलि तीन का धन सत्ताईस भया । बहुरि च्यारि का अंक चौवन बार लिख्या, मिलि तीन करि गुणत तीन का घन इक्यासी भया । बहुरि ऊर्वक एक सौ बासठ बार लिख्या, मिलिकरि तीन का वर्ग करि गुणित, तीन का घन दोय से तियालीस हुवा । तैसे ही अनंतगुणवृद्धि एक बार विषै कांडकमात्र असंख्यात गुणवृद्धि जोड़ें, एक अधिक ही कडक हो है । बहुरि तह अपने प्रमाण एक रूप के घर संख्यात गुणवृद्धि का कांडक प्रमाण के समान गुण्यपरणों देखि, जोड़ें, रूपाधिक कांडक का वर्ग हो है । बहुरि तिहि
१. 'पति' शब्द किसी प्रति में नहीं मिलता।