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[ गोम्मटसार भौवाeg गया २६७
मार्गदा
टीका - नरक गति विर्षे नारकोनि के लोभादि कषाय नि का उदय काल अंतर्मुहर्त मात्र है । तथापि पूर्व-पूर्व कषाय ते पिछले-पिछले कषाय का काल संख्यात गुरखा है । अंतर्मुहर्त के भेद घने, ताते हीनाधिक होतें भी अंतर्मुहुर्त ही कहिए। सोई कहिए हैं -- 'सर्व लें स्तोक अंतर्मुहूर्त प्रमारण लोभ कषाय का काल है । यात संख्यात गुणा माया कषाय का काल है । यातें सख्यात गुणा मान कषाय का काल है । याते संख्यात मुरणा क्रोध कषाय का काल है ।
बहरि देव गति वि क्रोधादि कषायनि का काल प्रत्येक अंतर्मुहर्त मात्र है । तथापि उत्तरोत्तर संख्यात गुणा है । सोई कहिए है - स्तोक अंतर्मुहूर्त प्रमाण तो क्रोध कषाय का काल है। तात संख्यात गुणा मान कषाय का काल है । तातै संख्यात गुरंगा माया कषाय का काल है। तातै संख्यात गुणा लोभ कषाय का काल है।
भावार्थ - नरक गति विर्षे क्रोध कषायरूप परिराति बहुतर हरे है । और कषायनिरूप क्रम से स्तोक रहै है।
देव गति विर्षे लोभ कषायरूप परिणति बहुतर रहै हैं । और कषायनिरूप क्रम तें स्तोक-स्तोक रहै है ।
सब्वसमासेणवहिवसगसगरासी पुणो वि संगुणिले । .. सगसगगुणगारहिं य, सगसगरासीण परिमाणं ॥२६७॥
सर्वसमासेनावहितस्वकस्वकराशौ पुनरपि संगुरिणते ।
स्वकस्वकगुणकारश्च, स्वकस्वकराशीनां परिमाणम् ॥२९७॥ टीका - सर्व च्यार्यों कषायनि का जो काल कह्या, ताके जेते समय होंहि, तिनिका समास कहिए, जोड दीएं, जो परिमारण प्रावै, ताका भाग अपनी-अपनी गति संबंधी जीवनि के प्रमाण कौं दीएं, जो एक भाग विर्षे प्रमाण होइ, ताहि अपनाअपना कषाय के काल का समयनि के प्रमाण रूप गुणकार करि गुण, जो-जो परिमाण होइ, सोई अपना-अपना क्रोधादिक कषाय संयुक्त जीवनि का परिमारण जानना । अपि शब्द समुच्चय वाचक है; ताते नरक गति दा देब गति विर्षे जैसे ही करना । सोई दिखाइए है -च्यार्यों कषायनि का काल के समयनि का जोड़ दीएं,
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