________________
acERAIKHETRAMMARRIALASARAFRASTRAMANESAME
credaourem
म्प लमाणमासमा मानसासमारलंटन्सालयसामाhastrate RamaAINARUWAHITALIRAमलमासम्म रुसाशास्H
RSHम्माल
Dictim. a. ndi Hi CROSRISHTHISNETWO -in-
४१८ ]
[ गोम्मटसार जीवका पापा २९६ बहरि जैसे काठ धोरा काल बिना नमावने योग्य न होइ, सैसै थोरा काल बिना जो विनयरूप नमन को प्राप्त न होइ । जैसा जो अजघन्य शक्ति लीएं मान, सो जीव कौं मनुष्य गति विर्षे उप जावं है ।
बहुरि जैसे बैंत की लकडी बहुत थोरे काल बिना नमाधने योग्य न होइ, तैसं बहुत थोरा काल बिना जो विनयल्प नमन को प्राप्त न होइ । असा जो जघन्य पशक्ति लीएं मान, सो जीव को देव गति विर्षे उपजावै है । इहां भी पूर्वोक्त प्रकार प्रकृति बंध होना वा उपमा, उपमेय का समानपना जानना ।
वेगवमलोरभ-सिंगे गोमत्तए य खोरप्थे। सरिसी माया णारय-तिरिय-परामर-गईसु खिवदि जियं ॥२८६॥
वेणूपमूलोरभ्रकगेण गोमूत्रेण च क्षुरप्रेण । . . सदृशो माया नारकतिर्यग्नरामरगतिषु क्षिपति जीवम् ॥२८६।।
टीका - बेरायमूल, उरभ्रकग, गोमूत्र, क्षुर समान माया ठिगनेरूप परिणति, सो कम से नारक, तिर्यच, मनुष्य, देव गति विर्षे जीव कौं उपजाव है । सोई कहिए हैं -
जैसे घेण्यमूल, जो बांस की जड़ की गांठ सो बहुत घने काल बिना सरल न होइ, तैसें बहुत धने काल बिना जो सरल न होइ, असा जो उस्कृष्ट शक्ति कौं लीएं माया, सो जीव कौं नरक गति विर्षे उपजावै है।
बहुरि जैसे उरभ्रकग, जो मीठे का सोंग, सो घने काल बिना सरल न होइ, तेसै धने काल बिना जो सरल न होइ, असा जो अनुत्कृष्ट शक्ति लीएं माया, सो जीव कौं तिर्यंच गति वि उपजावं है ।
बहुरि जैसे गोमूत्र, जो गायमूत्र की धारा, सो थोरा काल बिना सरल न होइ, तैसें थोरा काल बिना सरल न होइ, असी अजघन्य शक्ति लीए माया, सो जीव कौं मनुष्य गति विर्षे उपजा है।
बहुरि जैसे खुर, जो पृथ्वी कपरि बृषभादिक का खोज, सो बहुत थोरा काल बिना सरल न होइ, तैसें बहुत थोरा काला बिना जो सरल न होइ, असी जो जघन्य शक्ति लीएं माया, सो जीव कौं देव पति विर्षे उपजावै है । इहां भी पूर्वोक्त प्रकार प्रकृति बन्ध होना वा उपमा उपमेय का समानपना जानना ।
१- पखंडागम-पवला पुस्तक १,५ ३५२ माथा सं. १७६ । ..
-