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1 मोम्मरसार औषकाण गाथा २५०
मार्गद
ताका समाधान – जो समय-समय प्रति बंधे समय प्रबद्धनि का एक-एक निषेक एकठे होइ, विवक्षित एक समय विर्षे समय प्रबदमात्र हो है ।
__ कैसे ? सो कहिएहै - अनादिबंध का निमित्तक रि बंध्या विवक्षित समयप्रबद्ध, ताका जिस काल विर्षे अंत निषेक उदय हो है; तिस काल विर्षे, ताके अनतरि बंध्या समयप्रबद्ध का अंत ते दुसरा निषेक उदय हो है । ताके अनंतरि बंध्या समयप्रबद्ध का अंत में तीसरा निषेक उदयं हो है । जैसे चौथा प्रादि समयनि विर्षे अंध, समयप्रबद्धनि का अंत ते चौथा आदि निषेकनि का उदय क्रम करि आबाधाकाल रहित विवक्षित स्थिति के जेते समय तितने स्थान जाय, अंत विष जो समयप्रबद्ध बंध्या. ताका आदि निषक उदय हो है । अस सबनि कौं जोडे, विवक्षित एक समय विर्षे एक समयप्रबद्ध उदय आवे है ।
अंकसंदृष्टि करि जैसे जिन समयप्रबद्धनि के सर्व निषेक गालि गए, तिनिका तौ उदय है ही नाहों । बहुरि जिस समयप्रबद्ध के सैंतालीस निषेक पूर्वं गले, ताका अंत नव का निषेक वर्तमान समय विर्षे उदय आवै है । बहुरि जाके छियालीस निषेक पूर्वै गले, ताका दश का निधेक उदय हो है । जैसे ही क्रम ते जाका एकहू निषेक पूर्वं न गल्या, ताका प्रथम पांच से बारा का निषेक उदय हो है । असे वर्तमान कोई एक समय विर्षे सर्व उदय रूप निषेक । ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ । १८ २.० २२ २४ २६ २८ ३० ३२ । ३६ ४० ४४ ४८ ५२ ५६ ६० ६४ । ७२ ८० ८८ ६६ १०४ ११२ १२० १२८ । १४४ १६० १७६ १६२ २०८ २२४ २४० २५६ । २८८ ३२० ३५२ ३०४ ४१६ ४४८ ४८० ५१२ । असे इनिकों जोडे संपूर्ण समय प्रबद्धमात्र प्रमाण हो है ।
आगामी काल विर्षे जैसे नवीन समयप्रबद्ध के निषेकनि का उदय का सद्भाव होता जाइगा, तैसें पुरालो समयप्रबद्ध के निषेकनि के उदय का अभाव होता जायगा। जैसे आगामी सनय विर्षे नवीन समयप्रबद्ध का पांच से बारा का निषेक उदय आवैगा; तहां वर्तमान समय विषं जिस समयप्रबद्ध का पांच से बारा का निषेक उदय था, ताका पांच से बारा का निषेक का प्रभाव होइ, दूसरा च्यारि से असी का निषेक उदय होगा । बहुरि जिस समय प्रबद्ध का वर्तमान समय विर्षे च्यारि से असी का निषेक उदय था, ताका तिस निषेक का अभाव होइ, च्यारि सै अड़तालीस के निषेक का उदय होगा। असें कम से जिस समयप्रबद्ध का वर्तमान समय विर्षे नव