________________
३६२]
गोम्मटसार जीवकाम माथा २५८
वैविकवरसंचयं, द्वाविंशतिसमुद्र पारणविके ।
यस्माद्वरयोगस्य च, वारा अन्यत्र नहि बहुकाः ।।२५७।। . टीका - बैंक्रियिक शरीर का उत्कृष्ट संचय, सो प्रारण-अच्युत दोय स्वर्गनि के ऊपरला पटल संबंधी बाईस सागर प्रायु संयुक्त देव, तिन विर्षे संभवें है । अन्यत्र नीचले, ऊपरले पटलनि विष वा सर्व नारकीनि विषं न संभवै है; जातै प्रारणअच्युत बिना अन्यत्र वैक्रियिक शरीररूप योग का बहुत बार प्रवर्तन न हो है । चकार त तिस योग्य अन्य सामग्री, सो भी अन्यत्र बहुत बार न संभवे है ।
आग तेजस शरीर पर कार्मण शरीरनि का उत्कृष्ट संचयस्थान का विशेष
तेजासरीरजेठे, सत्तमचरिमम्हि बिदियवारस्स । कम्मस्स वि तत्थेव य, णिरये बहुबारभमिबस्स ॥२५॥ तेजसशरोरज्येष्ठं, सप्तमचरमे द्वितीयवारस्य ।
. कामरणस्यापि तत्रैव च, निरये बहुवारभ्रमितस्य ॥२५॥ टीका - तेजसशरीर का भी उत्कृष्ट संचय औदारिकशरीरवत् जानना । विशेष इतना जो सातवीं नरक पृथ्वी विर्षे दूसरी बार जो जीव उपज्या होइ । सातवीं पृथ्वी विषं उपजि, मरि, तिर्यत्र होइ, फेरि सातवों पृथ्वी विर्षे उपज्या होइ; तिस ही जीवके हो है।
-----
Hindi -Tania
-
-NALIS Srimurmanit-
m
r airion
. बहुरि प्राहारक शरीर का भी उत्कृष्ट संचय औदारिकशरीरवत् जानना । विशेष इतना जो प्राहारक शरीर कौं उपजावनहारा प्रमत्तसंयमी ही के हो है ।
बहरि कारण शरीर का उत्कृष्ट संचय सो सातवीं नरक पृथ्वी विर्षे नारकिन विषं जो जीव बहु बार भ्रम्या होइ, तिस ही के होइ है। किस प्रकार हो है ? सो कहैं हैं-कोई जीव बादर पृथ्वी कायनि विर्षे अंतर्मुहर्त पाटि, पृथक्त्व कोडिपूर्व करि अधिक दोय हजार सागर हीन कर्भ की स्थिति को प्राप्त भया । तहां तिस बादर पृथ्वीकार संबंधी अपर्याप्त पर्याय योरे धरै, पर्याप्त पर्याय बहुत धरै, तिनिका एकट्ठा किया हुवा पर्याप्त काल बहुत भया । अपर्याप्त काल थोरा भया । ऐसें इनिकौं पालता संता जब-जब श्रायु बांधै, तब-तब जघन्य योग करि बांध, यहु यथायोग्य उत्कृष्ट योग
avam
H