________________
३६. 1
[ गोम्मटसार जीवकापड गाथा २५६ प्रबद्ध बंध्या, ताका स्थितिबंध संपूर्ण अपना प्रायुमात्र हो है । बहुरि दूसरे समय जो समय प्रबद्ध बंध्या, ताका स्थितिबंध एक समय धाटि अपना प्रायु प्रमाण हो है । बहुरि तीसरे समय बंध्या जो समयप्रबद्ध, ताका स्थितिबंध दोय समय घाटि अपना आयु प्रमाण हो है । असे ही चौथा मादि उत्तरोत्तर समयनि विषं बंधे जे समयप्रबद्ध तिनिका स्थितिबंध एक-एक समय घटता होता अंत समय विर्षे बंध्या हवा समय'प्रबद्ध का स्थितिबंध, एक समयमात्र हो है। जाते प्रथम समय ते लमाइ अंत समय
यंत बंधे जे समयप्रबद्ध, तिनकी अपने प्रायु का अंत कौं उलंधि स्थिति न संभव है। अंमैं जिस-जिस समय प्रबद्ध की जितनी-जितनी स्थिति होइ, तिस-तिस समयप्रबद्ध को तितनी-तितनी स्थितिमात्र निषेक रचना जाननी। अंत विर्षे एक समय की स्थिति समयप्रबद्ध की कही । तहां एक निषेक संपूर्ण समयप्रबद्धमात्र जानना । बहुरि
अंत समय विषं गलितावशेष समयप्रबद्ध किंचिदूनद्वयर्द्धगुणहानिमात्र सत्वरूप एकठे 'हो हैं । जे समयप्रबद्ध बंधे, तिनि के निधेक पूर्वं गले, निर्जरारूप भए, तिनितें अवशेष निषेकरूप जे समयप्रबद्ध रहे, तिनिकौं गलितावशेष कहिए । ते सर्व एकठे होइ किछु घाटि ड्योढ गुणहानिमात्र समयप्रबद्ध ससारूप एकठे अंत समय विर्षे होहि हैं। बहुरि तीहि अंत समय विर्षे ही तिनि सबनि का उदय हो है । आयु के अंत भए पीछे ते रहैं नाहीं। तातें तीहि समय सर्व निर्जरें हैं; असे देव नारकोनि के तौ दैनियिक शरीर का अर मनुष्य-तिर्यचनि के औदारिक शरीर का अंत समय विर्षे किचिन द्वय,गुणहानिमात्र समयप्रबद्धनि का सत्त्व और उदय युगपत् जानना ।
प्रागै किस स्थान विर्षे सामग्रीरूप कैसी आवश्यक संयुक्त जीव विर्षे उत्कृष्ट संचय हो है; सो कहै हैं---
ओरालियवरसंचं, देवुत्तरकुरुवजादजीवस्स ।
तिरियमणुस्सस्स हवे चरिमवुचरिमे तिपल्लठिविगस्स ॥२५६॥ ... औरालिकवरसंचयं, देवोत्तरकुरूपजालजीवस्य ।
तिर्यग्मनुष्यस्य भवेत्, चरमद्वि चरमे त्रिपस्यस्थितिकस्य ॥२५६॥ टोका - यौदारिक आदि शरीरनि की जहां जीव कै उत्कृष्टपन बहुत परमाणू एकठे होइ; तहां उत्कृष्ट संचय कहिए । तहां जो जीव तीन पल्य आयु धर, देवकुरु वा उत्तरकुरु भोंगभूमि का तियंच वा मनुष्य होइ उपज्या; तहां उपजने