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[ मोम्मदसार जीवकाण्ड गापा २५४
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.. . बहुरि जैसे कार्माणशरीर का वर्शन कीया; तस ही औदारिक आदि तेजस पर्यत नोकर्मशरोर के समय प्रबद्धनि की पूर्वोक्त अपना-अपना स्थिति, मुग हानि, नाना गुण हानि, दो मुणहानि, अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण आदि करि, इहां पाबाबाकाल है नाही; ताते अपनी-अपनी स्थिति का प्रथम समय ही ते लगाय निषेक रचना करनी । जातें औदारिक आदि शरीरनि का जैसे ही आर्ग वर्णन कीजिये हैं। ...
प्रागे औदारिक आदि के समयबद्धनि का बंध, उदय, सत्त्व, अवस्था विर्ष वन्य का प्रसारण निकी हैं . : .. .. - एक्कं समयपबद्धं, बंधदि एक्कं उदेखि चरिमम्मि ।
गुणहाणीण दिवढं, समयपबद्धं हवे सत्तं ॥२५४॥ .
..एकं समयप्रबद्धं, बध्नाति एकमुवेति घरमे । ....... ... . : मुणहानीना द्वयध, समयबद्धं भवेत् . सत्त्वम् ॥२५४॥ ! : .. :: टीका - औदारिक आदि शरीरनि विर्षे तेजस पर कार्माण इनि दोऊनि का जीव के अनादि लें निरंतर संबंध है । तातै इनिका सदाकाल उदय पर सत्व संभव हैं । तातें जीव मिथ्यादर्शन आदि परिणाम के निमित्त ते समय-समय प्रति. तेजस .: संबंधी पर कार्मारण संबंधी एक-एक समयप्रबद्ध कौं बांध है। पुद्गलवर्गणानि कौं
तेजस शरीर रूप पर ज्ञानावरणादिरूप आठ प्रकार कर्मरूप परिणमा है । बहुरि . इनि दोऊ शरीरनि का समय-समय प्रति एक-एक समयप्रबद्ध उदयरूप हो है ।
अपना फल देने रूप परिणतिरूप परिमाण करि फल देइ, तैजस शरीरपना कौं-बा कार्माण शरीरपना कौं छोडि गर्ल है। निर्जर है । बहुरि विक्षित समय प्रबद्ध की स्थिति का अंत निषेक संबंधी समय विर्षे किंचिदून द्वधर्धगुण हानि करि गुणित समय प्रबद्ध प्रमाण सत्व हो है । इतने परमाणू सत्तारूप एकठे हो हैं । सर्वदा संबंध हैं परमार्थ करि. इनि दोऊनि का सत्वद्रव्य, .. समय-समय प्रति सदा ही. इतना
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१ . बहुरि औदारिक, वैक्रियिक शरीरनि के समय प्रबद्धनि विषं विशेष है। सो • कहिए हैं. । . तिनि प्रौदारिक.वा. वैक्रियिक शरीरनि के ग्रहण का प्रथम समय से लगाइ अपने प्रायु का. अंत समय पर्यंत शरीर लामा, नासकर्म के उदय संयुक्त जीव, सो समय-समय प्रति एक-एक तिस शरीर के समय प्रबद्ध कौं बांध है। पुद्गलवर्गणानि
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