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भ्यासानमखिफा भावाटीका 1
सेषां समयप्रबद्धाः, श्रेष्यसंख्येयभागगुणित क्रमाः ।। अनंतेन च तेजोद्विकाः, परं परं भवति सूक्ष्म खलु-१२४६।।
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टीका - तिन पंच शरीरवि के समय प्रबद्ध सर्व ही परस्पर समान नाहीं है,। उत्तरोत्तर अधिक परमाणुनि का समूह लीएं हैं; सो कहिए हैं । परमाणूनि का प्रमाण करि औदारिक शरीर का समथप्रबद्ध सर्व तें स्तोक है । याते श्रेणी का असंख्यातवा, भाग गुरखा परमाणू प्रमाण वैक्रियिक का समयबद्ध है । बहुरि यातें भी. धोरिंगका असंख्यातवां भाग गुणा परमाणू प्रमाण प्राहारक का समयप्रबद्ध है । असें आहारक पर्यंत जगतश्रेणी का असंख्यातवां भाग कौं गुणकार की विवक्षा जाननी । तातै परै आहारक के समय प्रबद्ध ते अनंतगुणा परमाणु प्रमाण तेजस का समयमद्ध है । बहुरि यातें भी अनंतगुणा परमाणू प्रमाण कारण का समय प्रबद्ध है। इहां 'अनंतेन तेजोद्विक' इस करि तैजसकागि विर्षे अनंतानंत गुणा प्रमाण जानना ।
बहुरि इहां कोऊ आशंका कर कि जो उत्तरोत्तर अधिके अधिके परमार कहे, तो उत्तरोत्तर स्थूलता भी होयगी ?
तहां कहिए है-परं परं सूक्ष्मं भवति कहिए उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं । औदारिक तं वैक्रियिक सूक्ष्म है । क्रियिक ते पाहारक सूक्ष्म है । आहारक तें तैजस सूक्ष्म है। तैजस ते काणि सूक्ष्म है । यद्यपि परमाणू तो अधिक अधिक हैं, तथापि स्कंध का बंधन में विशेष हैं । तातें उत्तरोत्तर सूक्ष्म हैं। जैसे कपास के पिंड तै- लोह के पिंड में अधिकपना होते भी कपास के पिंड 6 लोह का पिंड क्षेत्र थोरा रोक; तैसे जानना ।
प्राग औदारिकादिक शरीरनि. काः समयप्रबद्ध अर वर्गणा, ते कितने-कितने क्षेत्र विषै रहै ? असा प्रवगाहना भेदनि कौंकहैं हैं --
ओगाहणाणि तारणं, समयपबद्धाणं वग्गरणाणं च । अंगुलप्रसंखभागा, उवरुवरिमसंखगुणहीणा ॥२४७॥ :: अवगाहनानि तेषां समयप्रबद्धानों वर्गमान च।
अंगुलासंख्याभागा उपर्यु परि असल्यगुणहीनानि २४७॥