________________
SAIRAIMALHEmaiIANIM ED
[ गोम्मटसार बाबका गापा २२७ अनुभय भाषा जाननी । असे सल्य असत्य लक्षण रहित आमंत्रही प्रादि अनुभव भाषा जाननी । इनि विषं सत्य असत्य का निर्णय नाहीं, सो कारण कहैं हैं। जाते और मानननि का सुननेवाला के सामान्यपना करि तौ अर्थ का अवयव प्रगट हवा, ताते असत्य न कही जाइ । बहुरि विशेषपना करि अर्थ का अवयव प्रगट न हवा तात सत्य भी न कह्या जाय, तातें अनुभय कहिए । जैसे कहीं 'तू आव' सो इहां सभी सुननेवाला नै सामान्यपर्न जान्या कि बुलाया है, परंतु वह प्रावैगा कि न आवमा असा विशेष निर्णय तौं उस बचन में माहीं । ताते इसकौं अनुभय कहिए । असें सब का जानना । अन्य भी अनुभय वजन के भेद हैं । तथापि इन भेदनि वि गर्मित जानने । अथवा जैसे ही उपलक्षण ते असी ही व्यक्त अव्यक्त वस्तु का अंश की जनावनहारी और भी अनुभ्य भाषा जुदी जाननी।।
इहां कोऊ कहैगा कि अनक्षर भाषा का तो सामान्यपना भी व्यक्त नाही हो है, याकौं अनुभय वचन कैसे कहिए ?
ताकौं उत्तर - कि अनक्षर भाषावाले जीवनि का संकेतरूप वचन हो है । तिस हैं उनका बचनं करि उनके सुख-दुख प्रादि का अवलंबन करि हर्षादिक रूप अभिप्राय जानिएं है । तातें अनक्षर शब्द विषं भी सामान्यपना की व्यक्तता संभ है।
प्रागं ए मन वचन योग के भेद कहे, तिनिका कारण कहें हैंमरणवणाणं मूलणिमित्तं खलु पुष्णदेहउदो छ । मोसुभयाणं मूलणिमित्तं खलु होदि आवरणं ॥२२७॥
मनोवचनयोर्मूलनिमित्त खलु पूर्णदेहोदयस्तु ।
वृषालययोर्मूलनिमित्त खलु भवत्यावरणम् ।।२२७॥ टीका - सत्यमनोयोग वा अनुभयमनोयोग बहुरि सत्यवचनयोग वा अनुभयवचनयोग, इनिका मुख्य कारमा पर्याप्त नामा बामकर्म का उदय अर शरीर नामा नामकर्म का उदय जानना । जातै सामान्य है, सो विशेष विना न हो है । तानै मन वचन का सामान्य ग्रहण हूवा, तहां उस ही का विशेष जो है, सत्य पर अनुभय, ताका ग्रहण सहज ही सिद्ध भया । अथवा असत्य-उभय का आगे
मा