________________
३५८ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गामा २२४
सक्को जंबूदीवं, पल्लट्टदि पाववज्जवयणं च । पल्लोवमं च कमसो, जणपदसच्चादिविदुरांता ॥२२४॥
शको जंबूद्वीपं परिवर्तयति पापयर्जवचनं च । पत्थोपमं च क्रमशो, जनपदसत्यादिष्टांताः ॥ २२४॥
टोका - असंभवपरिहार पूर्वक वस्तु के स्वभाव का विधानरूप लक्षण धरै; जो संभावना तीहि रूप वचन सो संभावना सत्य कहिए। जैसे इंद्र जंबूद्वीप पलटावने कौं समर्थ है, जैसा कहिए। तहाँ जंबूद्वीप को पलटाने की शक्ति संभव नाहीं । ताका परिहार करि केवल वामें अँसी शक्ति ही पाइए है; जैसा जंबूद्वीप पलटावने की क्रिया की अपेक्षा रहित वचन सो सत्य है । जैसे बीज विषै अंकूरा उपजावने की शक्ति है, सो यह क्रिया की अपेक्षा लीएं वचन है । जातें असंभव का परिहार करि वस्तु स्वभाव का विधानरूप जो संभावना, ताके नियम करि क्रिया की सापेक्षता नाहीं है । जातें किया है, सो अनेक बाह्य कारण मिलें उपजै है |
बहुरि अतींद्रिय जो पदार्थ, तिनि विषै सिद्धांत के अनुसारि विधि निषेध का संकल्परूप जो परिणाम, सो भाव कहिए । तींहि नै लीएं जो बचन, सो भावसत्य कहिए। जैसे जो सूकि गया होंइ वा अग्नि करि पच्या होंइ वा घरटी, कोल्हू इत्यादि यंत्रaft fन्न कीया हों अथवा खटाई वा लूरण करि मिश्रित हवा होंइ वा भस्मीभूत हुवा होइ वस्तु, ताकौ प्रासुक कहिए। याके सेवन तें पापबंध नाहीं । इत्यादिक पापवर्जनरूप वचन, सो भावसत्य कहिए । यद्यपि इनि वस्तुनि विषै इंद्रियगोचर सूक्ष्म जीव पाइए हैं; तथापि आगम प्रमारण तें प्रासु प्रासुक का संकल्परूप भाव के आश्रित भैसा बचन सो सत्य है; जातें समस्त अतींद्रिय पदार्थ के ज्ञानीनि करि कह्या हुवा वचन सत्य है । चकार करि वैसा ही और भावसत्य
जानना ।
बहुरि जो किसी प्रसिद्ध पदार्थ की समानता किसी पदार्थ को कहिए सो उपमा हैं । तीहि रूप वचन सो उपमासत्य कहिए। जैसे उपमा प्रमाण विषै पल्योपम कह्या, तहां धान भरखे का जो खास ( गोदाम ) ताकों पल्य कहिए, ताकी उपमा जा होइ जैसी संख्या को पल्योपम कह्या, सो इहां उपमासत्य है । श्रसंख्यातासंख्यात रोम खंडनि के आश्रयभूत वा तीहि प्रमाण समयनि के आश्रयभूत जो संख्या