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सम्बामनिका भाषादीका ]
[.३४७ नाही कहा है। बादरनि विर्षे पर्याप्तपना दुर्लभ है । तातें पर्याप्त थोरे; अपर्याप्त घने हैं; . असा प्राचार्यनि का अनुक्रम जानि कथन कीया है। जैसा प्राचार्यनि का अभिप्राय जानना । " - आवलिअसंखसंखेणवहिदपवरंगुलेग हिदपदरं । कासो ससाणा, पुष्णूणतसा अपुण्णा हु ॥२१२॥
आवल्यसंख्यसंख्येनावहितप्रसंगुलेन हितातरम् ।
क्रमशस्त्रसतत्पूर्णाः पूनित्रसा · अपूर्णा हि ॥२१२॥ टीका - पावली का असंख्यातवां भाग का भाम प्रतरांगुल कौं दीएं, जो परिमाण पाव, ताका भाग जगत्प्रतर कौं दोएं, जो परिमारण प्रावै, तितना सर्व त्रसराशि का प्रमाण जानना । बहुरि संख्यात का भाग प्रतरांगुल को दीएं, जो परिमाण प्राव, ताका भाग जगत्पतर कौ दीएं, जो परिमाण मावै, तितना पर्याप्त प्रस जीवनि का प्रमाण जानना । बहुरि सामान्य स जीवनि का परिमाण मैं स्यो पर्याप्त सनि का परिमाण घटाएं, जो परिमारग अवशेष रहै, तितना अपर्याप्त स जीवनि का प्रमाए जानना । इहां भी पर्याप्तपना दुर्लभ है ! तातै पर्याप्त बस थोरे हैं, . . अपर्याप्त प्रस बहुत हैं; असा जानना।
प्रामें बादर अग्निकायिक आदि छह प्रकार जीवनि का परिमाण का विशेष निर्णय करने के निमित्त दोय गाथा कहै हैं - .. आवलिमसंखभागेणवहिदपल्लूणसायरछिदा।
बादरतेपणिभूजलवादाएं चरिमसायरं पुण्णं ॥२१३॥
प्रावल्यसंख्यभामेनावहितपल्योनसागरार्धच्छेदाः ।
बावरतेपनिभूजलवातानां चरमः सागरः पूर्णः ॥२१३॥ - टोका - बादर अग्निकायिक, अप्रतिष्ठित-प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती, पृथ्वी, अप, वायु इन छहौं राशि के अर्धच्छेदों का परिमारण प्रथम कहिए है । अर्धच्छेद का स्वरूप पूर्व धारानि का कथन विर्षे कह्या ही था; सो इहां एक बार पावली का असंख्यातवां भाग का भाग पल्य कौं दीएं, जरे एक भाग का परिमाण आव, तितनां सागर में सो घटाइए, तब बादर अग्निकायिक जीवनि का जो परिमाण, बाके .अर्ध