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गोम्मटसार जोक्काण्ड गाथा १९४
बहुरि एक साधारस जीव के कर्म का ग्रहण शक्तिरूप लक्षण धरै, जो काय योग, ताकरि ब्रह्मा हुवा, जो पुद्गल-पिंड, ताका उपकार कार्य, सो तिस शरीर विर्ष तिष्ठते अनंतानंत अन्य जीवनि का घर तिस जीव का उपकारी हो है । बहुरि अनंतानंत साधारण जीवनि का जो काय योग रूप शक्ति, ताकरि ग्रहे हूये पुद्गलपिंडनि का कार्यरूय उपकार, सो कोई एक जीव का वा तिन अनंतानंत साधारण जीवनि का उपकारी समान एकै साथिपनै हो है । बहुरि एक बादर निगोद शरीर विर्षे वा सूक्ष्म निगोद शरीर विर्षे क्रम तें पर्याप्त बादर निगोद जीव वा सूक्ष्म निगोद जीद उपजें हैं। तहां पहले समय अनंतानंत उपज हैं । बहुरि दूसरे समय तिनते असंख्यात गुणा धाटि उपज हैं ! असे ही प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रमाण काल पर्यंत समय-समय प्रति निरंतर असंख्यात गुणा घाटि क्रमकरि जीव उपजै हैं । तातै परै जघन्ध एक समय, उत्कृष्ट पावली का असंख्यातवां भाग प्रमारण काल का अंतराल हो है । तहां कोऊ जीवन उपज है । तहां पीछे बहुरि जघन्य एक समय, उत्कृष्ट प्रावली का असंख्यातवां भाग प्रमाण काल पर्यंत निरंतर असंख्यात गुणा धादि क्रम करि तिस निगोद शरीर विर्षे जीव उपज हैं। जैसे अन्तर सहित वा निरंतर निगोद शरीर विर्षे जीव उपज हैं । सो यावत् प्रथम समय विर्षे उपज्या साधारण जीव का जघन्य निर्वृति अपर्याप्त अवस्था का काल अवशेष रहै, तावत् असें ही उपजना होइ । बहुरि पोछे तिनि प्रथमादि समयनि विर्षे उपजे सर्व साधारण जीव, तिनिक आहार, शरीर, इंद्रिय, सासोस्वास, पर्याप्तिनि की संपूर्णता अपने-अपने योग्य काल विर्षे होइ है।
खंधा असंखलोगा, अंडरआवासयुलविदेहा वि। हेल्लिजोरिणगायो, असंखलोगरण गुणिदकमा ।१६४॥
स्कंधा असंख्यलोकाः, अंडरावासपुलविदेहा अपि ।
अधस्तनयोनिका, असंख्यलोकेन गुरिणतक्रमाः ।।१९४।। टोका - बादर निगोद जीवनि के शरीर की संख्या जानने निमित्त उदाहरणपूर्वक यह कथन करिए है । इस लोकाकाश विर्षे स्कंध यथा योग्य असंख्यात लोक प्रमाण हैं । जे प्रतिष्ठित प्रत्येक जीवनि के शरीर, तिनिकौं स्कंध कहिये हैं ! सो यहु यथा योग्य असंख्यात करि लोक के प्रदेश गुणें, जो प्रमाण होइ, तितने प्रतिष्ठित
प्रत्येक शरीर इस लोक विर्षे जानने । बहुरि एक-एक स्कंध विर्षे असंख्यात लोक __. प्रमारण अंडर हैं।