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[ होम्मटसार जोधकाण्ड गाथा १६१-१९२
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है । बहुरि जिस वनस्पती का कंदादिक की छालि पतली होइ, सो अप्रतिष्ठित प्रत्येक है।
प्रागै श्री नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती साधारण वनस्पती का स्वरूप सात गाथानि करि कहै हैं--
साहारणोबयेण णिगोदसरीरा हवंति सामण्णा । ते पुण दुविहा जीवा, बादर सुहमा ति विण्णेया ॥१६॥
साधारणोदयेन निगोवशरीरा भवति सामान्याः ।
ते पुर्नाद्वविधा जीवा, बादर-सूक्ष्मा इति विज्ञेयाः ।।१९१॥ दीका - साधारण नामा नामकर्म की प्रकृति के उदय ते निगोद शरीर के धारक साधारण जीव हो हैं । नि - कहिये नियतज अनंते जीव, तिनिको यो कहिये एक ही क्षेत्र कौं, द कहिये देइ, सो निगोद शरीर जानना । सो जिनके पाइए ते निगोदशरीरी हैं । बहुरि तेई सामान्य कहिये साधारण जीव हैं। बहुरि ते बादर पर सूक्ष्म असे भेद नै दोय प्रकार पूर्वोक्त बादर सूक्ष्मपना लक्षण के धारक जानने ।
साहारणमाहारो, साहाररणमारणपारणगहरणं च । साहारणजीवाणं, साहारणलक्खणं भणियं ॥१६२॥ साधारणमाहारः, साधारणमानपानग्रहरणं च।
साधारणजीवानां, साधारणलक्षणं भरिणतम् ॥१९२॥ टीका -- साधारण नामा नामकर्म के उदय के वशवर्ती, जे साधारण जीव, तिनिके उपजते पहला समय विर्षे आहार पर्याप्ति हो है; सो साधारण कहिए अनंत जीवनि के युगपत एक काल हो है। सोपाहार पर्याप्ति का कार्य यह जो आहार वर्गणारूप जे पुद्गल स्कंध, तिनिकों खल-रस भागरूप परिणमा है । बहुरि तिनही आहार वर्गणारूप पुद्गल स्कंधनि कौं शरीर के आकार परिणमावनेरूप है कार्य जाका, असा शरीर पर्याप्ति, सो भी तिनि जीवनि के साधारण हो है। बहुरि तिनही कौं स्पर्शन इंद्रिय के प्राकार परिणमावना है कार्य पाका, असा इन्द्रिय पर्याप्ति, सो
भी साधारण हो है । बहुरि सासरस्वास ग्रहणरूप है कार्य जाका, असा मानपान ...१. षट्स डागम -- धवला पुस्तक १, पृष्ठ २७२, गाथा १४५