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। एका ८.१७४ आगे स जीवनि की संख्या तीन माथानि करि कहै हैं
बितिचपमारणमसंखेगवहिदपदरंगुलेरण हिपदरं । होगकम पडिभागो, आवलियासंखभागो दु॥१७८॥ द्वित्रिचतुः पंचमानमसंख्येनावहितप्रतरांगुलेनहितंप्रतरम् ।
हीनक्रमं प्रतिभाग, प्रावलिकासंख्यभागस्तु ॥१७८॥ .
ढोका - द्वींद्रिय, त्रौंद्रिय, चतुरिंद्रिय, पंचेंद्रिय - इनि सर्व सनि का मिलाया हुवा प्रमाण, प्रतरांगुल कौं असंख्यात का भाग दीजिए, जो प्रमाण आवे, तावा भाग जगत्तर कौं दीएं यों करते जितना होइ, तितना जानना । इहां द्वींद्रिय राशि का प्रमाण सर्वते अधिक है। बहुरि तातें श्रींद्रिय विशेष घाटि है । तातें चौंद्रिय विशेष घाटि है । सातै पंचेंद्रिय दिशेष घाटि है, सो घाटि कितने-कितने हैं - असा विशेष का प्रमाण जानने के निमित्त भागहार पर भागहार का भागहार पावली का प्रसंख्यातवां भाग मात्र जानना ।
सो भागहार का अनुक्रम कैसे हैं ? सो कहिये हैं---
बहुभागे समभागो, चउण्णमेदोसिमेक्कभागसि । उत्तकमो तत्थ वि बहुभागो बहुगस्स देओ दु ॥१७६॥
बहुभागे समभागश्चतुमितेषामेकमागे ।
उक्तकलस्तत्रापि बहुभामो बहुकस्य देयस्तु ।।१७९॥ टीका - स जीवनि का जो परिमाण कहा, तीहिन पावली का असंख्यातवां भाग का भाम दीजिये। तामै एक भाग तौ जुदा राखिये अर जे अवशेष बहू माग रहे, तिनिके च्यारि वट (बटवारा) कीजिये, सो एक-एक वट द्वींद्रिय, श्रींद्रिय, चतुरिंद्रिय, पंचेंद्रियनि कौं बरोबरि दीजिये। बहुरि जो एक भाग जुदा राख्या था, ताको प्रावली का असंख्यातवां भाग कौं भाग दीजिये । तामैं एक भाग तो जुदा राखिए अर अवशेष बहुभाग द्वींद्रियनि कौं दीजिये । जाते सर्व विषं बहुत प्रमाण वींद्रिय का है । बहुरि जो एक भाग जुदा राख्या था, ताकी बहुरि भावली का असंख्यातथा भाग का भाग दीजिए। तामें एक भाग तो जुदा रखिये, बहुरि अवशेष भाग ते-इंद्रियनि कौं दीजिए । बहुरि जो एक भाग जुदा राख्या था, तार्को बहुरि अविली
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