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। गोम्मटसार जीवकाण्ड गायर १७४-५७५
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असल्यात भाग मात्र हो है. सोइ है । बहुरि उत्कृष्ट प्रवगाहना स्वयंभू रमण समुद्र विषे महामच्छ का उन्लष्ट शरीर संतान घनांगल मात्र हो दै. सगे है -
प्रागै इन्द्रियज्ञानवाले जीवनि कौं कहि । अब अतींद्रिय ज्ञानबाले जीवनि का निरूपण करैं हैं -
ण वि इंदियकरणजुदा, अवगहादीहि गाहया अत्थे। रणेव य इंदियसोक्खा, अणिदियारणंतरणारगसुहा' ॥१७४॥
नापि इंद्रियकरणयुता, अवग्रहादिभिः ग्राहकाः अर्थे ।
नैव च इंद्रियसौख्या, अनिद्रियानंतज्ञानसुखाः ।।१७४॥ टोका - जे जीव नियम करि इन्द्रियनि के करण भोहैं टिमकारना आदि व्यापार, तिनिकरि संयुक्त नाहीं हैं; ताते ही अवग्रहादिक क्षयोपशम ज्ञान करि पदार्थ का ग्रहण न करें हैं । बहुरि इन्द्रियजनित विषय संबंध करि निपज्या सुख, तिहिकरि संयुक्त नाहीं हैं, ते अर्हत वा सिद्ध अतींद्रिय अनंत ज्ञान वा अतींद्रिय अनंत सुखकरि विराजमान जानने; जाते तिनिका ज्ञान अर सुख सो शुद्धात्मतत्त्व की उपलब्धि तें उत्पन्न भया है।
प्रागै एकेद्रियादि जीवनि की सामान्यपन संख्या कहै हैं - थावरसंखपिपीलिय, भमरमणुस्सादिगा सभेदा जे । जुगवारमसंखेज्जा, रवंतारणता जिगोदभवा ॥१७॥
स्थावरशंखपिपीलिकाभ्रमरमनुष्यादिका सभेदा थे।
युगवारमसंख्येया, अनंतानंता निगोदभवाः ।।१७५॥ टोका - स्थावर जो पृथ्वी, अप, तेज, वायु, प्रत्येक वनस्पती ए - पंच प्रकार तो एकेंद्री । बहुरि संख, कौडी, लट इत्यादि केंद्री। बहुरि कीडी, मकोडा इत्यादि तेंद्री। बहुरि भ्रमर, माखी, पतंग इत्यादि ची इन्द्री । बहुरि मनुष्य, देव, नारकी पर जल वरादि तिर्यंच, ते पंचेंद्री । ए जुदे-जुदे एक-एक असंख्यातासंख्यात प्रमाण हैं। बहुरि निगोदिया जो साधारण वनस्पती रूप एकेंद्री ते अनंतानंत हैं ।
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. १. षट्खंडागम - धबला पुस्तक १, पृष्ठ २५१, गाथा १४० ।