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[ गोम्मटसार जीवकाच माया १६२-१६३ तत्तो एगारणवसगपणचउरिणयमूलभाजिदा सेढो । पल्लासंखेज्जबिमा, पत्तेयं पारणदादिसुरा' ॥१६२॥
लत एकादशनवसप्तपंचचतुनिअमूलभाषिता श्रेणी ।
पल्यासंख्यातकाः, प्रत्येकमानतादिसुराः ।। १६२ ॥ टोका -- बहुरि तहां ते ऊपरि सनत्कुमार-माहेंद्र, बहुरि ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, बहुरि लांतव - कापिष्ठ, शुक्र - महाशुक्र, बहुरि शतार - सहस्रार इनि पांच युगलनि विर्षे अनुक्रमते जगत्त्रेणी का ग्यारहवां, नवमां, सातवा, पांचवां, चौथा जो वर्गमूल, तिनिका भाग अगरणी की बोरं, जितना जितना परिमाण पावै, तितना-तितना तहां के वासी देवनि का प्रमाण जानना ।
बहुरि ता ऊपरि पानत-प्राणत युगल, बहुरि पारण-अच्युत युगल, बहुरि तीन अधोग्नेवेयक, तीन मध्य प्रवेयक, तीन उपरिम ग्रेवेयक, बहुरि नव अनुदिश विमान, बहुरि सर्वार्थसिद्धि विमान विना च्यारि अनुत्तर विमान इन एक-एक विर्षे देव पल्य के असंख्यातवै भाय प्रमाण जानने ।
तिगुणा सत्तगुणा बा, सन्वट्ठा माणुसीपमाणादो। सामण्णदेवरासी, जोइसियादो विसेसहिया ॥१६३॥ त्रिगुणा सप्तगुणा:वा, सर्वार्था, मानुषीप्रमाणतः ।
सामान्यदेवराशिः, ज्योतिष्कतो विशेषाधिकः ।।१६३॥ टीका - बहुरि सर्वार्थसिद्धि के वासी अहमिंद्र देव, मनुषिणोनि का जो परिमाण, पर्याप्त मनुष्यनि का च्यारि भाग में तीन भाग प्रमाण कहा था, तातै तिगुणा जानना। बहुरि कोई आचार्य का अभिप्रायले सात गुणा है । बहुरि ज्योतिषी देवनि का परिमारण विर्षे भवनवासी, कल्पवासी, देवनि का प्रमाण करि साधिक अंसा ज्योतिषी देवनि के संख्याल भाग, जो व्यंतर राशि, सो जोड़े, सर्व सामान्य देवनि का परिमारण हो है । इति श्री प्राचार्य नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ती विचित गोम्मटसारं द्वितीय नाम पंचसंग्रह ग्रंथ की जीवतस्वप्रदीपिका नाम संस्कृतटीका के अनुसारि-इस सम्यानचन्द्रिका नामा भाषाटीका विर्ष प्ररूपित जे वीस प्ररूपरणा, तिनिवि गसिप्ररूपमा नामा छटा अधिकार संपूर्ण भया ॥६॥
--- CRORASARAL
१. पखंडागम - धवला पुस्तक ३, पृष्ठ १७, साया-१३ ।
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