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सम्यरेशानचन्द्रिका भाघाटीका |
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बहुरि इंद्रिय मार्गणा विषै एकेंद्रिय का जघन्य अंतर क्षुद्रभव, उत्कृष्ट अंतर geter को पूर्व कि दोय हजार सागर । विकलेंद्रिय का जघन्य अंतर क्षुद्रभव, उत्कृष्ट अंतर असंख्यात पुद्गल परिवर्तन मात्र है । यह अंतर एकेंद्रियादिक पर्यायनि का का है, गुणस्थान मिथ्यादृष्टि ही है, ताका तहां अंतर है नाहीं । पंचेंद्रिय विषै मिध्यादृष्टि का सामान्यवत्, सासादनादि व्यारि उपशमक पर्यंतति का जघन्य अंतर सामान्यवत्, उत्कृष्ट अंतर पृथक्त्व कोडि पूर्व अधिक हज़ार सागर है । अवशेषनि का सामान्यवत् अंतर है ।
बहुरि काय मार्गणा विषै पृथ्वी, आप, तेज, वायुकाय का जघन्य क्षुद्रभव उत्कृष्ट संख्यात पुद्गल परिवर्तन र वनस्पति का जघन्य क्षुद्रभव, उत्कृष्ट असंख्यात लोक मात्र अंतर है । यह अंतर पृथ्वीकायिकादि का कया है, गुणस्थान मिथ्यादृष्टि है । ताका तहां अंतर है ही ।
surfon far मिथ्यादृष्टि का सामान्यवत्, सासादनादि च्यारि उपशमक पर्यंतनिका जघन्य सामान्यवत्, उत्कृष्ट पृथक्त्व कोडि पूर्व अधिक दोय हजार सागर अंतर है । श्रवशेषनि का सामान्यवत् अंतर हैं ।
बहरि योग मार्गणा विषै मन, वचन, काय योगनि विषे संभवते गुणस्थाननि का वा योगी का अंतर नाही, जाते एक ही योग विषै गुणस्थानांतर को प्राप्त होs aft विवक्षित गुणस्थान विषै प्राप्त होता नाहीं ।
बहुरि वेद मार्गणा विषै स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेदनि विषै मिथ्यादृष्टि आदि दोऊ उपशमक पर्यंत जघन्य अंतर सामान्यवत् है । उत्कृष्ट अंतर स्त्रीवेद विषं मिथ्यादृष्टि का देशोन पंचावन पत्य, औरनि का पृथक्त्व सौ पत्य पुरुषवेद विषै मिथ्यादृष्टि का सामान्यवत् औरनि का पृथक्त्व सो सागर । नपुंसकवेद विषे मिथ्यादृष्टि का तेतीस 'सागर देशोन, औरनि का सामान्यवत् अंतर है। दोय क्षपति का सामान्यवत् अंतर है । बहुरि वेदरहितनि विषै उपशम अनिवृत्तिकरण, सुक्ष्म सांपराय का जधन्य वा उत्कृष्ट अंतर अंतर्मुहूर्त है, औरनि का अंतर नाही है ।
बहुरि कषाय मार्गमा विषे क्रोध, मान, माया, लोभ विषै मिथ्यादृष्टचादि उपशम अनिवृत्तिकरण पर्यंत का मनोयोगवत्, दोय क्षपकनि का अर केवल लोभ विष सूक्ष्मसां पराय के उपशम वा क्षपक का अर अकषाय दिषै उपशांतकषायादि का अंतर नाही है ।