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सम्यानचस्तिका भाषाटोकर]
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प्रथमोपशमसहितायाः, विरताविरतेश्चतुर्दश दिवसाः।
विरतेः पंचदश, विरहितकालस्तु बोद्धव्यः ॥ १४५ ।। टीका - विरह काल कहिए उत्कृष्ट अंतर, सो प्रथमोपशम सम्यक्त्व करि संयुक्त जे विरताविरत पंचम गुणस्थानवी जीव, तिनिका चौदह दिन का जानना । बहुरि तिस प्रथमोपशम सम्यक्त्व संयुक्त षष्टमादि गुणस्थानवर्ती, तिनिका पंद्रह दिन जानना । वा दूसरा सिद्धान्त की अपेक्षा करि चौबीस दिन जानना । असे नाना जीव अपेक्षा अंतर कह्या । बहुरि इनि मार्मरणानि का एक जीव अपेक्षा अन्तर अन्य ग्रन्थ के अनुसारि जानना !
यहां प्रसंग पाइ कार्यकारी जानि, तत्त्वार्थसूत्र की टीका के अनुसारि काल अन्तर का कथन करिए है ।
तहां प्रथम काल का वर्णन दोय प्रकार - नाना जीव अपेक्षा पर एक जीव अपेक्षा ।
___ तहां विवक्षित गुणस्थाननि का वा मार्गणास्थाननि विष संभवते गुणस्थाननि का सर्व जीवनि विर्षे कोई जीव के जेता काल सद्भाव पाइए, सो चाना जीव अपेक्षा काल जानाना । पर तिनही का विवक्षित एक जीव के जेते काल सद्भाव पाइए, सो एक जीव अपेक्षा काल जानना ।
तिनिविर्षे प्रथम नाना जीव अपेक्षा काल कहिए है, सो सामान्य-विशेष करि दोय प्रकार । तहां गुणस्थाननि विर्षे कहिए सो सामान्य अर मार्गरणा विर्षे कहिए सो विशेष जानना ।
तहां सामान्य करि मिथ्यादृष्टि, असंयत, प्रगत, अप्रमत्त, सयोग केवलनि का सर्व काल है । इनिका कबहूं प्रभाव होता नाही। बहुरि सासादन का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पल्य का असंख्यातवां भाग । बहुरि मिश्र का जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट पल्य का असंख्यातवां भाग ! बहुरि च्यारों उपशम श्रेणी वालों का जघन्य एक समय उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त । इहां जघन्य एक समय मरण अपेक्षा कह्मा है । बहुरि ध्यारों क्षपकश्रेणीवाले अर प्रयोग केवलीनि का अधन्य वा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त मात्र काल है।