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संयमानचन्द्रिका मावाटीका ]
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जहां काल का परिमाण होइ, तहां तितने समय जानने । जहां भाव का परिमाण होइ, तहां तितने अविभाग प्रतिच्छेद जानने ।
इहां दृष्टांत कहिए है - जैसें हजार मनुष्य हैं, जैसा कहिए तहां वे हजार जुदे-जुदे जानने, तैसे द्रव्य परिमारण विर्षे जुदे-जुदे पदार्थ जानने ।
बहुरि से यह वस्त्र वीस हाथ है, तहां उस वस्त्र विर्षे वीस अंश जुदे-जुदे नाहीं, परन्तु एक हाथ जितना क्षेत्र रोके, ताकी कल्पना करि वीस हाथ कहिए हैं । तैसे क्षेत्र परिमाण विर्षे जितना क्षेत्र परमाणु रोके, ताकौं प्रदेश कहिए, ताकी कल्पना करि क्षेत्र का परिमारण कहिए हैं।
बहुरि जैसे एक वर्ष के तीन से छयासठि दिन-रात्रि कहिए, तहां अखंडित काल प्रवाह विष अंश है नाहीं, परन्तु सूर्य के उदय-अस्त होने की अपेक्षा कल्पना करि कहिए हैं । तसै काल परिमाण विर्षे जितने काल करि परमाणु मंद गति करि एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश कौं जाइ, तीहि काल को समय कहिए । तीहि अपेक्षा कल्पना करि काल का परिमारण कहिए हैं।
बहुरि जैसे यह सोला वानी का सोना है, तहां उस सोना विर्षे सोला अंश है नाही, तथापि एक बान के सोना विर्षे जैसे वरणादिक पाइए है; तिनकी अपेक्षा कल्पना करि कहिए हैं । तैसे भाव परिणाम विष केवलज्ञानगम्य अति सूक्ष्म जाका दूसरा भाग न होइ, असा कोई शक्ति का अंश ताकी अविभाग प्रतिच्छेद कहिए, ताकी कल्पना करि भाव का परिमारण कहिए । मुख्य परिमाण तो असे जानना, विशेष जैसा विवक्षित होइ, सो जानना ।
बहुरि जहां क्षेत्र परिमाण विष प्रावली का परिमाण कहिए, तहां प्रावली के जेते समय होइ, तितने तहां प्रदेश जानने ।
बहुरि काल परिमाण वि जहां लोक परिमाण कहे, तहां लोक के जितने प्रदेश होइ, तितने समय जानने; इत्यादि असे जानने । बहुरि जहां संख्यात, असंख्यात अनंत सामान्यपनें कहे, तहां तिनिका भेद यथायोग्य जानना ।
सर्वभेद कहने में न आवै, ज्ञानगम्य है, तातें कौन रीति सौं कहिए ?
परन्तु जैसे लोक विर्षे कहिए याके लाखों रुपैया छ, तहां असा जानिए, कोड्यो नाही, हजारों नाही, तैसें होनाधिक भाव करि स्थूलपणे परिमाण जानना,
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