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गोम्मटसार जोक्काण्ड सम्बन्धी प्रकरण बहुरि जो यहु सम्यग्ज्ञानचंद्रिका नामा भाषा टीका, तिहिविर्षे संस्कृत टीका ते कहीं अर्थ प्रकट करने के अथि, वा कहीं प्रसंगरूप, वा कहीं अन्य ग्रंथ का अनुसारि लेह अधिक भी कथन करियेगा। पर कहीं अर्थ स्पष्ट न प्रतिभासंगा, तहां न्यून कथन होइगा ऐसा जानना । सो इस भाषा टीका विर्षे मुख्यपनै जो-जो मुख्य व्याख्यान है, ताकौ अनुक्रमते संक्षेपता करि कहिए है ! जात याके जाने अभ्यास करनेवालों के सामान्यपनै इतना तो जानना होइ जो या वि ऐसा कथन है । अर ऋम जाने जिस व्याख्यान को जानना होइ, ताकौ तहां शीघ्र अवलोकि अभ्यास कर, बा जिनने अभ्यास किया होइ, ते याकौं देखि अर्थ का स्मरण करें, सो सर्व अर्थ की सूचनिका कीए तो विस्तार होई, कथन प्रागै है ही, तात मुख्य कथन की सूचनिका कम से करिए है।
तहाँ इस भाषा टीका विर्षे सुचनिका करि कर्माष्टक आदि गणित का स्वरूप दिखाइ संस्कृत टीका के अनुसारि मंगलाचरणादि का स्वरूप कहि मूल गाथानि की टीका कीजिएगा ! तहां इस शास्त्र विषं दोय महा अधिकार हैं - एक जीवकांड, एक कर्मकांड । तहां जीवकांड विधैं बाईस अधिकार हैं।
तिनिविर्षे प्रथम गुणस्थानाधिकार है । तिस विषं गुणस्थाननि का नाम, या सामान्य लक्षण कहि तिनिविर्षे सम्यक्त्व, चारित्र अपेक्षा प्रौदयिकादि संभवते भावनि का निरूपण करि क्रम मिथ्यादृष्टि आदि गुणास्थाननि का वर्णन है । तहां मिथ्यादृष्टि विष पंच मिथ्यात्वादि का सासादन विर्षे ताके काल वा स्वरूप का, मिश्र विर्षे ताके स्वरूप का वर मरमा न होने का, असंयत विष वेदकादि सम्यक्त्वनि का का ताके स्वरूपादिक का, देश संयत विर्षे ताके स्वरूप का वर्णन है । बहुरि प्रमत्त का कथन विषं ताके स्वरूप का अर पंद्रह बा अस्सी वा साढ़े सैंतीस हजार प्रमाद भेदनि का पर तहां प्रसंग पाइ संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट, समुद्दिष्ट करि बा गुढ यंत्र करि अक्षसंचार विधान का कथन है। जहाँ भेदनि को पलटि पलटि परस्पर लगाइए तहां अक्षसंचार विधान हो है । बहुरि अप्रमत्त का कथन विर्षे स्वस्थान . अर सातिशय दोय भेद कहि, सातिशय अप्रमत्त के अधःकरण हो है, ताके स्वरूप या काल वा परिणाम वा समय-समय संबंधी परिणाम वा एक-एक समय विष अनुकृष्टि विधान, वा तहां संभवते च्यारि आवश्यक इत्यादिक का विशेष वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ श्रेएी व्यवहार रूप गणित का कथन है । तिसविर्षे सर्वधन, उत्तरधन, मुख,