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गोम्प्रसार गोदकापड गावा १२५
केवलज्ञान पर्यंत जागने । या सर्वस्थान केवलज्ञान का प्राधा परिणाम हैं। सर्वधारा विर्षे सर्वसंख्यात के विशेष थे, तिनिमें आधे तौ समरूप हैं, प्राधे विषमरूप हैं; ताते याके स्थान केवलज्ञान का प्राधे प्रमाण कहे ।
बहुरि जिस विर्षे विषमरूप संख्या विशेष पाइये, सो विषमधारा है । याका आदि स्थान एक, दूसरा स्थान तीन, तीसरा स्थान पांच, असे दोय-दोय बधता एक घाटि केबलज्ञान पर्यंत जानने : याके सर्वस्थान आधा केवलज्ञान प्रमाण हैं।
बहुरि जिस विष वर्गरूप संख्या विशेष पाइये, सो कृतिधारा है। याका प्रथम स्थान एक, जात एक का वर्ग एक ही है। बहुरि दूसरा स्थान च्यारि, जातें दोय का वर्ग च्यारि हो है। बहुरि तीसरा स्थान नव, जाते तीनि का वर्ग नव है। बहुरि चौथा स्थान सोलह, जाते च्यारि का वर्ग सोलह है । जैसे ही पंचादिक के वर्ग पचीस नै प्रादि देकरि याके स्थान केवलज्ञान पर्यंत जानने । याके सर्वस्थान केवलज्ञान का वर्गमूल परिमारण जानने । जिस परिमारण का वर्ग कीये केवलज्ञान का परिमारण होइ, इतने याके स्थान है।
बहुरि जिस विर्षे वर्गरूप संख्या विशेष न पाइये, सो प्रकृतिधारा है । सर्व धारा के स्थानकनि में स्यों कृतिधारा के स्थान दूरि कीए अवशेष सर्वस्थान इस धारा के जानने । याका पहिला स्थानक दोय, दूसरा तीन, तीसरा पांच, चौथा छह, (पांचवां सात, छठा पाठ) इत्यादि एक घाटि केवलज्ञान पर्यंत आनने । याके सर्वस्थान केवलज्ञान का वर्गमूल करि हीन केवलज्ञान परिमाण जानने ।
बहुरि जिस विर्षे घनरूप संख्या विशेष पाइये, सो धनधारा है । याका पहिला स्थान एक, जाते एक का धन एक ही है। बहुरि दूसरा स्थान पाठ, जाते दोय का धन पाठ हो है। बहुरि तीसरा स्थान सत्ताईस, जाते तीन का धन सत्ताईस हो है । चौथा स्थान. चौसठि, जातं च्यारि का धन चौसठि हो है। जैसे पंचादिक का धन सवासी में प्रादि देकरि याके स्थान केवलज्ञान के आसन्न धन पर्यंत जानने ।
केवलज्ञान का आसन्न घन कहा कहिये ? '
सो अंकसंदृष्टि करि दिखाइये है -- केवलज्ञान का परिमारण पैंसठि हजार . पांच से छत्तीस (६५५३६) । याका आधा कीजिए, तब घनधारा का स्थान होइ (३२७६८) । याका घनमूल बत्तीस (३२) । बहुरि याके ऊपरि तेतीस नैं आदि
NAGAR