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सम्मानन्द्रका मावाटीका।
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बीस हजार पाए; सोई इतने इहां यादि स्थान ते हीन है। बहरि इस ही स्थान कौं संख्यात गुणहानि का प्रादिरूप कहिए, जाते जघन्य संख्यात दोय, सो आदि स्थान कौं दुगुणा घाटि कीए एक लाख बीस हजार पाए, सोई इस स्थान का प्रमाण है। पूर्व राशि की जितने का भाग दीए उत्तर राशि का प्रमाण प्रा अर तिस उत्तर राशि के प्रमाण कौं तितने करि गुण पूर्व राशि का प्रमाण होई; सातै भागहार का कहना पर गुणहानि का कहना एकार्थरूप जानना । जैसे चौसठ कौं च्यारि का भाग दीजिए तो भी सोलह होइ पर सोलह कौं च्यारि करि गुणें भी चौसठ होइ; तातै सोलह कौं चौसठि का चौंथा भाग भी कहिए, अर चौसठ तें चौगुणां धाटि भी कहिए । जैसे ही जहां जितनी गुणहानि का प्रमाण होइ, तहां तितने का भागहार जानना । सो इहां जघन्य संख्यात दोय, सो आदि स्थान कौं दुगुणा घाटि कीए वा दोय का भाग दीए एक लाख बीस हजार होइ, तीहि प्रमाण जो स्थान, सो संख्यात गुणहानि का आदिरूप जानना । बहुरि असे ही जिस-जिस स्थान का प्रमाण संभवते संख्यात के भेदनि करि गुणें आदि स्थान का प्रमाण मात्र होइ, सो-सो स्थान संख्यात गुणहानिरूप जानना । तहां जो स्थान अडतालीस हजार प्रमाण भया, सो स्थान संख्यात मुरणहानि का अंतरूप जानना ! जातें उत्कृष्ट संख्यात पांच, सो आदि स्थान का प्रमाण क पंचगुणा घाटि कोए. इतना प्रमाण आये है । बहुरि सेंतालीस हजार नव सै निन्यागावं ते लगाइ चालीस हजार एक पर्यंत प्रमाणरूप जे स्थान हैं, ते प्रवक्तव्य गुणहानिरूप जानने । जातें उत्कृष्ट संख्याल वा जघन्य असंख्यात गुणा घाटि आदि स्थान कौं कीए भी जो प्रभारण होइ, तातै इनिका प्रमाण हीन अधिक है । तातै इनिकौं संख्यात गुणहानिरूप वा असंख्यात गुणहानिरूप न कहे जाइ । बहुरि हानिरूप होइ जो स्थान बालीस हजार प्रमाण भया, सो स्थान असंख्यात गुणहानि का आदिरूप है; जाते जघन्य असंख्यात छह, सो आदि स्थान कौं छहपुरणा घाटि कीए इतना प्रमाण आवै है । पैसे ही जिस-जिस स्थान का प्रमाण संभवते असंख्यात के भेदनि करि गुण आदि स्थान मात्र होइ, सो-सो स्थान असंख्यात गुणहानिरूप जानना । तहां जो स्थान सोलह हजार प्रमाण रूप होइ, सो स्थान असंख्यात गुणहानि का अंतरूप है । जाते उत्कृष्ट असंख्यात पंद्रह, सो आदि स्थान कौं पंद्रहगुणा घाटि कीए इतना प्रमाण हो है । बहुरि एक घाटि सोलह हजार तें लगाइ एक अधिक पंद्रह हजार पर्यन्त जे स्थान हैं, ते प्रवक्तव्य मुरणहानिरूप जानने । जातें उत्कृष्ट असंख्यात वा जघन्य अनंतगुणा धादि भी नादि