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गोम्मटसार जीवकाण्ड भाषा
गुणा है। यातें पंचेंद्री पर्याप्त का उत्कृष्ट श्रवगाहन संख्यात गुणा है । जैसें एकएक बार संख्यात का गुणकार करि नव बार संख्यात का भागहार विर्ष एक-एक वार का अपवर्तन करतें पंचेंद्री अपर्याप्त का उत्कृष्ट प्रवगाहन एक बार संख्यात करि भाजित घनांगुल प्रमाण हो है । बहुरि यातें त्रींद्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट प्रवगाहन संख्यात गुणा है, सो अपवर्तन करिए; तथापि इहां गुणकार के संख्यात का प्रमाण भागहार के संख्यात का प्रमाण तें बहुत है । तातें त्रीद्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट
वाहन संख्यात गुणा घनांगुल प्रमाण है । याते चौइंद्री पर्याप्त का उत्कृष्ट श्रवगाहन संख्यास गुणा है । यातें बेंद्री पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन संख्यात गुणा है । या प्रतिष्ठित प्रत्येक पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन संख्यात गुणा है । यातें पंचेंद्री पर्याप्त का उत्कृष्ट अवगाहन संख्यात गुणा है। असें क्रम तें अवगाहन के स्थान जानने ।
सूक्ष्म निगोद लब्धि पर्याप्त का जघन्य श्रवगाहन ते सूक्ष्म वायुकायिक लब्धि पर्याप्त के जघन्य अवगाहन का गुणाकार स्वरूप श्रावली का असंख्यात भाग कहा । ताकी उत्पत्ति का अनुक्रम को अर तिन दोऊनि के मध्य श्रवगाहन के भेद हैं, तिनके प्रकारनि कौं माथा नव करि कहे हैं-
अवरुवरि इङ्गिपदेसे, जुदे असंखेज्जभागवढीए । श्रादी निरंतर मदो, एगेगपदेसपरिवढी ॥ १०२ ॥ वोपरि एकप्रदेशे, युते असंख्यात भागवृद्धेः । आदि: निरंतरमतः, एकैकप्रवेशपरिवृद्धिः ॥ १०२ ॥
टीका - सूक्ष्म निगोद लब्धि पर्याप्तक जीव का जधन्य अवगाहन पूर्वोक्त प्रमाण, ताकी लघु संदृष्टि करि यहु सर्व तें जधन्य भेद है, तातें याका आदि अक्षर ज ऐसा स्थापन करि बहुरि यातें दूसरा अवगाहना का भेद के अधि इस जघन्य अवगाहन विषे एक प्रदेश जोड़ें, सूक्ष्म निगोद लब्धि अपर्याप्तक का दूसरा riter का भेद हो है । बहुरि ऐसें ही एक-एक प्रदेश बधता अनुक्रम करि तावत् प्राप्त होता यावत् सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्त का जधन्य अवगाहना, सो सूक्ष्म fruta for पर्याप्तक का जघन्य अवगाहना ते ग्रावली का असंख्यातवां भाग गुणा हो । तहां असंख्यात भाग वृद्धि, संख्यात भाग वृद्धि, संख्यात गुण वृद्धि असंख्यात गुण वृद्धि ऐसें चतुस्थान पतित वृद्धि र बीच-बीचि प्रवक्तव्य भाग वृद्धि