________________
-
-
man.
१५४ ]
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा ५१.५२ ऐसे हैं; ताकारण तें अपूर्व है करण कहिए परिणाम जा विर्षे, सो अपूर्वकरण गुणस्थान है - ऐसा निरुक्ति करि लक्षरण कहा है ।
भिण्णसमठियहि दु, जीबेहि रण होदि सम्बदा सरिसो। करणेहि एक्कसमयट्ठियोह सरिसो विसरिसो वा ॥५२॥ १ भिन्नसमयस्थितैस्सु, जीवन भवति सर्वदा सादृश्यम् ।
करणैरेकसमयस्थितैः सादृश्यं वैसाश्यं वा ॥५२॥
टीका - जैसें अध:प्रवृत्तकरण विर्षे भिन्न-भिन्न ऊपरि नीचे के समयनि विर्षे तिष्ठते जीवनि के परिणामनि की संख्या पर विशुद्धता समान संभव है; तैसें इहां अपूर्वकरण मुणस्थान विर्षे सर्वकाल विर्षे भी कोई ही जीव के सो समानता न संभव है । बहुरि एक समय विषं स्थित करण के परिणाम, तिनके मध्य विवक्षित एक परिणाम की अपेक्षा समानता अर नाना परिणाम की अपेक्षा असमानता जीवनि के अध:करणवत् इहां भी संभव है, नियम नाहीं; असा जानना ।
भावार्थ - इस अपूर्वकरण विर्षे ऊपरि के समयवर्ती जीवनि के अर नीचले समयवर्ती जीवनि के समान परिणाम कदाचित् न होइ । बहुरि एक समयवर्ती जीवनि के तिस समय संबंधी परिणामनि वि परस्पर समान भी होइ पर समान नाहीं भी होइ ।
ताका उदाहरण - जैसे जिनि जीवनि की अपूर्वकरण मांडै पांचवां समय भया, तहां तिन जीवनि के जैसे परिणाम होंहि, तैसे परिणाम जिन जीवनि की अपूर्वकरण मां. प्रथमादि चतुर्थ समय पर्यन्त का षष्ठमादि अंत समय पर्यन्त भए होंहि, तिनके कदाचित् न होंइ, यह नियम है। बहुरि जिनि जीवनि की अपूर्वकरण मांडै पांचवई समय भया, असे अनेक जीवनि के परिणाम परस्पर समान भी होंइ, जैसा एक जीव का परिणाम होइ, तैसा अन्य का भी होइ अथवा असमान भी होइ । एक जीव का.औरसा परिणाम होइ, एक जीव का औरसा परिणाम होइ । जैसे ही अन्य-अन्य समयवर्ती जीवनि के तो जैसें अधःकरण विर्षे परस्पर समानता भी. थी, तैसें. इहां नाहीं है । बहुरि एक समयवर्ती जीवनि के जैसे अधःकरण विर्षे
A LGOG --.
--
T
.
.
.
१.पटसंडागम बनला पुस्तक १, पृष्ठ १४, माथा न. ११६.