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मम्याजानन्तिका भाषाटीका 1
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विशुद्धता अनंतगुणी है । तातै प्रथम निर्वर्गणाकांडक का तृतीय समय संबंधी उत्कृष्ट खण्ड की उत्कृष्ट विशुद्धता अनंतगुणी हैं । या प्रकार जैसैं सर्प की चाल इधर तें ऊधार, ऊधर से इधर पलटनिरूप हो है ; तैसे जघन्य तें उत्कृष्ट, उत्कृष्ट से जघन्य असे पलटानि विर्षे अनंतगणी अनुक्रम करि विशुद्धता प्राप्त करिए, पीछे अंत का निर्वर्गणाकांडक का अंत समय संबंधी प्रथम खण्ड की जघन्य परिणाम विशुद्धता अनंतानंतगुरणी है । काहै त ? जात पूर्व-पूर्व विशुद्धता से अनंतानंतगुणापनौं सिद्ध है। बहुरि ताते अंत का निवर्गणाकांडक का प्रथम समय संबंधी उत्कृष्ट खण्ड की परिणाम विशुद्धता अनंतगुराणी है। तातै ताके ऊपरि अंत का निर्वर्गणाकांडक का अंत समय संबंधी अंत खण्ड की उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता पर्यन्त उत्कृष्ट खण्ड की
उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता अनंतानंतगुणा अनुक्रम करि प्राप्त हो है । तिनि विर्षे जे , जघन्य तै उत्कृष्ट परिणामनि की विशुद्धता अनंतानंतगुणी है, ते इहां विवक्षारूप नाहीं है; असा जानना ।
या प्रकार विशुद्धता विशेष धरै जे अधःप्रवृत्तकरण के परिणाम, तिनि विर्षे गुणश्रेणिनिर्जरा, गुणसंक्रमण, स्थितिकांडकोत्करण, अनुभागकांडकोत्करण भए च्यारि आवश्यक न संभवे हैं । जाते तिस अधःकरण के परिणामनि के तैसा गुणश्रेरिण निर्जरा आदि कार्य करने की समर्थता का अभाव है। इनका स्वरूप प्राग अपूर्वकरह के कथन विर्षे लिखेंगे ।
तौं इस करण विर्षे कहा हो है ? .. केवल प्रथम समय तें लगाइ समय-समय प्रति अनंतगुणी-अनंतगुरपी विशुद्धता की वृद्धि हो है । बहुरि स्थितिबंधापसरण हो है । पूर्वे जेता प्रमाण लीए कर्मनि का स्थितिबंध होता था, तातें घटाइ-घटाइ स्थितिबंध करै है । बहुरि साता घेदनीय कौं आदि देकरि प्रशस्त कर्मप्रकृतिनि का समय-समय प्रति अनंतगुरणा-अनंतगुणा बधता गुड, खंड, शर्करा, अमृत समान चतुस्थान लीए अनुभाग बंध हो है । बहुरि असाता वेदनीय आदि अप्रशस्त कर्म प्रकृतिनि का समय-समय प्रति अनंतगुणाअनंतगुरणा पटता निंब, कांजीर समान द्विस्थान लीए अनुभाग बंध हो है, विषहलाहल रूप न हो है । जैसें च्यारि आवश्यक इहां संभवें हैं । अवश्य हो हैं, ताते इनिकों आवश्यक कहिए है।
बहुरि असे यह कहा जो अर्थ, ताकी रचना अंकसंदृष्टि अपेक्षा लिखिए है ।