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| गोम्मटसार भोवका माथा Ve
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ताका आधा कौं चय एक करि गुणी अरं गच्छ च्यारि करि गुणें छह होइ, सो इहाँ उत्तरधन का प्रमाण जानना । बहुरि इस उत्तरधन छह की (६) सर्वधन एक सौ बासठि (१६२) विष घटाएं, अवशेष एक सौ छप्पन रहे, तिनकौं अनुकृष्टि गच्छ च्यारि का भाग दीएं गुणतालीस पाए, सोई प्रथम समय संबंधी परिणामनि का जो प्रथम खण्ड, ताका प्रमाण है, सो यह ही सर्व जघन्य खण्ड है; जातें इस खण्ड तें अन्य सर्व खंडनि के परिणामनि की संख्या पर विशुद्धता करि अधिकपनों संभव है। बहुरि तिस प्रथम खंड विर्षे एक अनुकृष्टि का चय जोडें, तिसही के दूसरा खंड का प्रमाण चालीस हो है । जैसे ही तृतीयादिक अंत खंड पर्यंत तिर्यक् एक-एक चय अधिक स्थापने' । तहां तृतीय खंड विर्षे इकतालीस अंत खंड विर्षे बियालीस परिणामनि का प्रमाण हो है । ते ऊर्ध्व रचना विर्षे जहां प्रथम समय संबंधी परिणाम स्थापे, ताकै आग-बाग बरोबरि ए खंड स्थापन करने । ए (खंड) एक समय विर्षे युगपत अनेक जीवनि के पाइए, तातै इनिको बरोबरि स्थापन कीए हैं। बहरि ताते परै ऊपरि द्वितीय समय का प्रथम खंड प्रथम समय का प्रथम खंड ३६ ते एक अनुकृष्टि चय करि (१) एक अधिक हो है; तातें ताका प्रमाण चालीस है । जाते द्वितीय समय संबंधी परिणाम एक सो छयासलि, सो ही सर्वधन, तामें अनुकृष्टि का उत्तर धन छह घटाइ, अवशेष कौं अनुकृष्टि का गच्छ च्यारि का भाग दीयें, तिस द्वितीय समय का प्रथम खंड की उत्पत्ति संभव है । बहुरि ताक प्राग द्वितीय समय के द्वितीयादि खंड, ते एक-एक चय अधिक संभव हैं ४१, ४२, ४३ । इहां द्वितीय समय का प्रथम खंड सो प्रथम समय का द्वितीय खंड करि समान है।
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असे ही द्वितीय समय का द्वितीयादि खंड, ते प्रथम समय का तृतीयादि खंडनि करि समान हैं । इतना विशेष - जो द्वितीय समय का अंत का खंड प्रथम समय का सर्व खंडनि विर्षे किसी खंड करि भी समान नाहीं । बहुरि तृतीयादि समयनि के प्रथमादि खंड द्वितीयादि समयनि के प्रथमादि खंडनि तें एक विशेष अधिक हैं।
- तहां तृतीय समय के ४१, ४२, ४३, ४४ । चतुर्थ के ४२, ४३, ४४, ४५ । पंचम समय के ४३, ४४, ४५, ४६ । षष्ठम समय के ४४, ४५, ४६, ४७ ५ सप्तम समय के ४५, ४६, ४७, ४८ । अष्टम समय के ४६, ४७, ४८, ४६ । नवमा समयः - के ४७, ४८, ४६, ५० । दशयां समय के ४८, ४६, ५०, ५१ । ग्यारहवां समय के ४६, ५०, ५१, ५२ । बारहवां समय के ५०, ५१, ५२, ५३ । तेरहवा समय
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