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सम्यग्ज्ञानचत्रिका भावाटी
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राष्ट्रकथालापी कहा, सो याके पर एक भेद अवनिपाल कथा है, यात अनंकित स्थान एक घटाएं, पंद्रह रहै, सोई पूछया था, ताका उत्तर असा - जो राष्ट्रकथालापीलोभी-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत-निद्रालु-स्नेहवान, असा पालाप पंद्रहवां है । सो यह विधान दूसरा प्रस्तार की अपेक्षा जानना ।
बहुरि प्रथम प्रस्तार अपेक्षा नीचे तैं अनुक्रम जानना ।
तहां उदाहरण कहिए है - स्नेहवान-निद्रालु-श्रोत्र इंद्रिय के वशीभूत-मायावीस्त्रीकथालापी, असा आलाप केथवां है ?
तहां एक रूप स्थापि, प्रथम प्रस्तार अपेक्षा अपरि का प्रमाद विकथा, ताका प्रमाण च्यारि करि गुणे, च्यारि भए, सो इहां स्त्रीकथालापी ब्रह्मा, सो याकै परै तीन भेद हैं। तातै अनंकित स्थान तीन घटाएं, अवशेष एक रह्या, ताकी कषाय प्रमाद च्यारि करि गुण, च्यारि भए, सो इहां मायादी प्रहा, ताके परै एक लोभ अनंकित स्थान है, ताकौं घटाएं तीन रहै, याकौं इंद्रिय प्रमाद पांच करि गुणे, पंद्रह भए, सो इहां श्रोत्र इंद्रिय का ग्रहण है । ताके पर कोऊ भेद नाहीं, तात अनंकित स्थान का अभाव है। इस हेतु से शून्य घटाएं भी पंद्रह ही रहैं । जैसे स्नेहवाननिद्रालु-श्रोत्र इंद्रिय के वशीभूत-मायावी-सीकथालापी, ऐसा पालाप पंद्रहबां है । या ही प्रकार विवक्षित प्रमाद का आलाप की संख्या हो है, ऐसे अक्ष धरि संख्या का ल्यावना, सो उद्दिष्ट सर्वत्र साधै ।
आगे प्रथम प्रस्तार का प्रक्षसंचार की प्राश्रय करि नष्ट, उद्दिष्ट का मूढ यंत्र कहै हैं -
इगिबितिचपरगखपणदसपण्परसं खवीसतालसट्ठी य । संठविय पमदठाणे, गठ्ठद्दिठं च जारण तिहाणे ॥४३॥ एकद्वित्रिचतुः पंचखपंचदशपंचदशविंशच्चत्वारिंशत्वष्टीन ।
संस्थाप्य प्रमाद स्थाने, नष्टोद्दिष्टे च जानीहि त्रिस्थाने ॥४३॥
टीका -- प्रमादस्थानकनि विर्षे इंद्रियनि के पंच कोठानि विर्षे क्रम ते एक, दोय, तीन, च्यारि, पांच इन अंकनि कौं स्थापि; कषायनि के च्यारि कोठानि विर्षे क्रम सैं बिंदी, पांच, दश, पंद्रह इन अंकनि कौं स्थापि; तसे विकथानि के च्यारि कोठानि विर्षे क्रम ते बिंदी, बीस, चालीस, साठि इनि अंकनि कौं स्थापि; निद्रा,