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सम्यग्ज्ञानान्द्रका भरपाटीका ]
भावार्थ - सोलह भेदनि विर्ष एक-एक भेद ऊपरि पांच-पांच इंद्रिय स्थापने, सो इनकौं जो., असी भंग हो हैं । यह प्रस्तार भागें कहिए जो अक्षसंचार, ताका कारण है । जैसे प्रस्ताररूप स्थापे जे असी भंग, तिनिका पालाप जो भंग कहने का विधान, ताहि कहिए है - स्नेहवान्-निद्रालु-स्पर्शन इंद्रिय के वशीभूत-क्रोधी-स्त्रीकथालापी असे यहु असी भंगनि विर्षे पहिला भंग है । बहुरि स्नेहवान्-निद्रालु-रसना इंद्रिय के वशीभूत-क्रोधी-स्त्रीकथालापी असें यह दूसरा भंग है । बहुरि स्नेहवान्निद्रालु-घ्राण इंद्रिय के बशीभूत-क्रोधी-स्त्रीकथालापी असें यह तीसरा भंग भयाः । बहुरि स्नेहवान्-निद्रालु-चक्षु इंद्रिय के वशीभूत-क्रोधी-स्त्रीकथालापी असें यह चौथा भंग है । बहुरि स्नेहवान्-निद्रालु-श्रोत्र इंद्रिय के वशीभूत-क्रोधी-स्त्रीकथालापी अस यह पांचवा भंग है। अॅसें पांच भंग भए । याही प्रकार क्रोधी की जायगा मानी स्थापि पंच भंग करने। .
बहुरि मायावी स्थापि पंच भंग करने। बहुरि लोभी स्थापि पंच भंग करने । असे एक-एक कषाय के पांच-पांच होइ, च्यारि कषायनि के एक स्त्रीकथा प्रमाद विर्षे वीस मालाप हो हैं । बहुरि जैसे स्त्रीकथा पालापी की अपेक्षा वीस भेद कहे, तैसें ही स्त्रीकथालापी की जायगा भक्तकथालापी, बहुरि राष्ट्रकथालापी, बहुरि अवनिपालकथालापी क्रम में स्थापि एक-एक विकथा के वीस-वीस भंग होइ । च्यारौ विकथानि के मिलि करि सर्वप्रमादनि के असी पालाप हो हैं, असा जानना ।
प्राग अन्य प्रकार प्रस्तार दिखावै हैं - रिमक्खित्तु बिदियमेतं, पढमं तस्सुवरि विदयमेक्कक्कं । पिडं पडि रिणक्खेो , एवं सव्वत्थ कायवो ॥३॥
निक्षिप्त्या द्वितीयमात्र, तस्योपरि द्वितीयमेककम् ।
पिडं प्रति निक्षेप, एवं सर्वत्र कर्तव्यः ॥३८॥ . टीका - कषायनामा दूसरा प्रमाद का जेता प्रमाण, तीहिमात्र स्थानकनि विर्षे विकथास्वरूप पहिला प्रमाद का समुदायरूप पिंड जुदा-जुदा स्थापि ( ४ ४ ४ ४ ), बहुरि एक-एक पिडप्रति द्वितीय प्रमादनि का प्रमाग का एक-एक रूप परि स्थापना
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