________________
सम्यम्हानचन्द्रिका भाषटका j हो हैं । इहां सूत्र विर्षे पहिले चकार कह्या, सो सर्व ही ए प्रमाद हैं, असा साधारण भाव जानने के अथि कह्या है । बहुरि दूसरा तथा शब्द कह्मा, सो परस्पर समुदाय करने के अर्थि कह्या है। है : प्रागै इनि प्रमादनि के अन्य प्रकार करि पांच प्रकार हैं, तिनको नक गाथानि करि कहैं हैं -
संखा तह पत्यारो, परियट्टरण एट्ठ तह समुन्दिनें। एवे पंच पयारा, पमदसमुक्कित्तणे ऐया ॥३॥ संख्या तथा प्रस्तारः, परिवर्तन नष्टं तथा समुद्दिष्टम् ।
एते पंच, प्रकाराः, प्रमादसमुत्कीर्तने ज्ञेयाः ॥३५॥ टोका -- संख्या, प्रस्तार, परिवर्तन, नष्ट, समुद्दिष्ट ए पांच प्रकार प्रमादनि का व्याख्यान विर्षे जानना । तहां प्रमादनि का पालाप को कारणभूत जो अक्षसंचार के निमित्त का विशेष, सो संख्या है । बहुरि इनका स्थापन करना, सो प्रस्तार: है । बहुरि. अक्षसंचार परिवर्तन है । संख्या धरि अक्ष का ल्यावना नष्ट है । प्रक्षः धरि संख्या का ल्यावना समुद्दिष्ट है । इहां भंग कौं कहने का विधान, सो नालापः जानना । बहुरि भेद वा भंग का नाम अक्ष जानना । बहुरि एक भेद अनेक भंगनि विर्षे क्रम ते पलट, ताका नाम अक्षसंचार जानना । बहुरि जेथवां भंग होइ, तीहि प्रमाण का नाम संख्या जानना । • आग विशेष संख्या की उत्पत्ति का अनुक्रम कहैं हैं - - सवे पि पुष्वभंगा, उपरिमभंगेसु एक्कमेक्कसु ।'
मेलति त्ति य कमसो, गुरिणदे उप्पज्जदे संखा ॥३६॥ सर्वेऽपि पूर्वभंगा, उपरिमभंगेषु एककेषु ।।
मिलति इति च क्रमशो, गुणिले उत्पद्यते संख्या ॥३६॥ टीका - सर्व ही पहिले भंग ऊपरि-ऊपरि के भंगनि विर्षे एक-एक विर्षे मिलें हैं, संभवं. हैं । यातै क्रम करि परस्पर मु0, विशेष संख्या उपज है । सोई कहिए है - पूर्व भंग विकथाप्रमाद च्यारि, ते ऊपरि के कषायप्रमादनि विर्षे एक-एक विर्षे संभधै